कृपया गौर करें…
देश का शौर्य दिवस में महान फील्ड मार्शल जनरल करिअप्पा की
नियुक्ति से गणना शुरू होकर …,
अब सेना का अपना १५
जनवरी २०२३ को ७५ वां गौरव शाली दिवस व वर्ष धूम धाम से मनाया जा रहा है
महान नायक.., वीर परमवीर विनायक दामोदर सावरकर की उक्ति जो आज भी सार्थक
है..,
देश को समर्पित… व आज देश के महान जाँबाज़ फील्ड मार्शल जनरल करिअप्पा
जिन्हें इतिहास के पन्नों में गुमनाम कर दिया ….
जबकि उन्हीं की आज़ाद भारत में नियुक्ति को शौर्य दिवस से
मनाया जाता है ..,
जिनकी देश भक्ति व नेहरू की ग़द्दारी के बावजूद लद्धाख व
कारगिल का क्षेत्र आज जो देश से जुड़ा है वह प्रथम देश के फील्ड मार्शल जनरल
करिअप्पा की ही देंन है
आज वीर सावरकर की उक्ति अब ही उद्धृत है “
शक्ति ही शक्ति का सम्मान करती है”
जो पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम ने भी माना कि यह श्लोगन
मैंने वीर सावरकर के उद्बोधन से चुराया है ..
१९६२ में चीन के हाथो से करारी पराजय को उदगृहत कर व अपना
इस्तीफ़ा प्रधान मंत्री नेहरू को सौपते हुए आज़ाद भारत के जाँबाज़,
राजनेताओं के चुंगल में न फँसने वाले निर्भीक प्रथम फील्ड
मार्शल जनरल करिअप्पा ने देशवासियों को आवाहन व नेहरू को लताड़ते हुए अपना
इस्तीफ़ा देते कहा “ काश हमने वीर सावरकर की बात मानी होती तो हमें पराजय का मुख
नही देखना पड़ता..”
बेशर्म नेहरू को अपने अय्याशी कृत व झूठे शांति दूत के
महात्मा नही दुरात्मा गाँधी के खंडित भारत को सही ठहराने के अनुसरण से जब १९३८ के दौर के तीन सालों में गांधी को पश्चिमी मीडिया के दबाव में नोबल
पुरस्कार के लिए नामांकित तो किया था लेकिन अंग्रेजों का पिल्लू होने से उनका दावा
ख़ारिज होता गया,
अब व्यभिचारी पंडित की उपाधि वाले इस कृत्य से प्रधानमंत्री नेहरू को कश्मीरी समाज ने बहिष्कृत कर समाज से निकाल दिया था
नेहरू ने तानाशाही पश्चिमी मीडिया के बल से अपने कांग्रेस
पार्टी के सांसदों पर छद्म धाक से स्वंय को “भारत रत्न” से नवाज़ा .. व यह शांति
दूत कपूत निकला अब गाँधी के नोबेल पुरस्कार हो हथियाने यों कहें की दावेदारी के
चक्कर में चीनी थप्पड़ से देश का ४६ हज़ार किलोमीटर भूभाग दे बैठा
अपने इस कृत्य का अफ़सोस न कर स्वंय इस्तीफ़ा देने के बजाय
रक्षा मंत्री कृष्ण मेनन से इस्तीफ़ा लेकर अपने चेहरे की कालिख उन पर पोत दी
याद रहे आज कांग्रेस से विपक्षी दल तक ७५ सालों से भौंक रही है की RSS
ने देश की आज़ादी में योगदान नही दिया …
जब सन १९६२ में चीन से हार रही सेना का जज़्बा बढ़ाने के
लिए RSS
का दल रण क्षेत्र में उतर गया व चीनी सेना को भी आभाष हो
गया कि देश का प्रधानमंत्री तो कायर है
लेकिन देश का संगठन जाँबाज़ है और चीनी सेना उल्टे पाँव दौड़ी
यूँ कहें डरे नेहरू का पायजामा गीला हो गया
अभी ताजा नए बयान में छद्म गाँधी का वंशज राहुल उर्फ़ पप्पू
कह रहा है की मेरे वंशज आरएसएस से घृणा करते थे और मुझे सिर कटाना पड़े तो भी
आरएसएस RSS
से नही मिलूँगा
याद रहे अपने कृत्य से शर्मिंदा होकर अंततः प्रधान मंत्री
नेहरू ने RSS को २६ जनवरी १९६३ के गणतंत्र दिवस की परेड में शामिल कर
सम्मानीत देशभक्त संगठन का दर्जा दिया
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