सन १९०१ में ब्रिटेन की प्रथम महारानी विक्टोरिया
की इंग्लँड में मृत्यु हुई , उस समय वीर सावरकर की आयु मात्र १८ साल की
थी..
देश को ग़ुलामी से और भयंकर रूप से जकड़ने वाले
तलवाचाटु किम ह्यूम के कोंग्रेसी दादाभाई नौरोज़ी गोपालकृष्ण गोखले रानाडे व अन्य
नेताओं ने जनता से आवाहन किया था कि महारानी विक्टोरिया का देश भर में शोक दिवस व
शोक सभा का आयोजन किया जाएगा
इस संदेश को सुनते ही वीर सावरकर क्रोध से तम तमा कर
इन कोंग्रेस के तलुवाचाटु नेताओं को लताड़ते हिये कहा
“ देश को आज़ादी का स्वाँग रचने
वाले निठल्लों यह जनता को मूर्ख बनाने का खेल बंद करो… वह
हमें १०० सालों से अधिक ग़ुलाम रखने की पुनः प्रस्तुति से आप देश में अपनी स्तुति
से ढिंढोरा पीटने का खेल बंद करो …
याद रहे उसी दौरान देश में प्लेग की बीमारी भी
इंग्लँड से आईं थी व आज के कोरोना बीमारी से कई गुना अधिक हिंदुस्तानी काल के गाल
समा गए थे… तब भी ये
पिछलग्गू नेता अंग्रेजों के तलुवा चाटने व अपने महारथ बढ़ाने में अव्वलता बढ़ाते
रहे
और
जनता को एक बात ध्यानकर्षित करना चाहता हूँ .. देश
के छद्म शांतिदूत के नाम से हिंसा से २५ लाख हिंदुस्तानियों की हत्या करवाने वाला “महात्मा” जो
वीर सावरकर से १४ साल बड़े थे वह अपना अस्तित्व बचाने के लिए वीर सावरकर के
अध्यक्षता में शत्रु के देश इंग्लँड में सन १९०७ में “१८५७
भारत की गौरवशाली क्रांति के ५० वर्ष” के उद्घोषक मंच में
गाँधी को मंच में स्थान दिया
व गाँधी ने वीर सावरकर के रोंगटे खड़े करने वाले/
समा बांधने वाले भाषण व
इंडिया हाउस में देशी विदेशी नागरिकों को एक महान
मंत्र दिया “ ग़ुलामी देश
पर कलंक है” इसे तोड़कर ही देश व जीवन संवर सकता है ..
गाँधी ने भी भूरि भूरि प्रशंसा कर वीर सावरकर का लोहा माना…
यह देश का दुर्भाग्य था विश्व के क्रांतिकारियों के
जीवन में स्फूर्ति भरने वाले वीर सावरकर को यदि काला पानी सजा नही होती तो देश
१९१४ के प्रथम विश्व युद्ध के पश्चात आजाद होकर,,,
ह्यूम की कोंग्रेस जिसके विचार आज अलगाव वाद , धर्मवाद , जातिवाद
, भाषावाद से देश खंडित हो गया जो आज तक चल रहें हैं उसका
अंत हो गया होता ..
No comments:
Post a Comment