Saturday, 5 June 2021

भय है तो क्षय है...!!!, आज की शिक्षा प्रणाली ने कम उम्र के बच्चों का बचपन छीन कर जीवन छिन्न भिन्न कर 5 से 10 किलो के किताबी झोले के बोझ से शिक्षा प्रणाली कोल्हू के बैल की तरह एक धुरी पर चक्कर पर चक्कर लगा रही है। उन्हें क्या पढ़ाया जा रहा है…!!! व क्या समझ में आ रहा है शिक्षक को उससे लेना देना नही है

 


भय है तो क्षय है...!!!, आज की शिक्षा प्रणाली ने कम उम्र के बच्चों का बचपन छीन कर जीवन छिन्न भिन्न कर 5 से 10 किलो के किताबी झोले के बोझ से शिक्षा प्रणाली कोल्हू के बैल की तरह एक धुरी पर चक्कर पर चक्कर लगा रही है।

उन्हें क्या पढ़ाया जा रहा है…!!! व क्या समझ में आ रहा है शिक्षक को उससे लेना देना नही है

 



स्कूल से घर पहुँचने पर माता  पिता द्व्रारा शिक्षित होने के बावजूद उन्हे Tuition पर भेज कर  बच्चों

को पढ़ाई के अति भार से उनके खेलने कूदने पर

पावंदी से उन्हे विक्षिप्त जीवन जीने को मजबूर किया जा रहा है।



कोरोना काल, भले ही लोगों को काल के गाल 
निगल रहा है लेकिन बालकों को स्वछंद जीवन 
जीने का आभास हो रहा है की शिक्षा में Tuition
 ( अध्यापन )की बेड़िया से मुक्त होकर On-Line 
परीक्षा को देखकर अभिभावकों को भी अहसास
हो रहा है कि उनके बच्चे रटंत विद्या से जकड़े 
हुये हैं मूल ज्ञान से अनभिज्ञ हैं और शिक्षा पुराने ढर्रे
 पर चल रही है  व कई घरों में अभिभावक अपने 
बच्चों का प्रश्नपत्र हल कर मौजूदा शिक्षा प्रणाली 
का मखौल उड़ा रहें हैं...

क्या भविष्य में आने वाली नई शिक्षा प्रणाली अपनी

मातृभाषा में पढ़ाकर इसका निदान निकाल पाएगी

क्या अब राष्ट्रीयता की भावना से भारतेंदु  हरिश्चन्द्र ने देश-प्रेम की रचनाओं के माध्यम से जन-मानस

मे राष्ट्रीय भावना का बीजारोपण होगा जिन्होने कहा था

 

निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल

बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल

अर्थात...!!  बिन मातृभाषा से राष्ट्र जड़ है, राष्ट्र के

वैभव उन्नति व बल का उत्प्रेरक मातृभाषा ही है ..

भारतेंदु हरीश चंद्र

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