सन १९४२, मैं
सिंध का प्रधानमंत्री अल्लाह बख्श..,मै, हिन्दुस्थान के टुकड़े होने नहीं दूंगा.., चर्चिल..,
आपके अखंड हिन्दुस्थान की अपमान जनक टिप्पणी के विरोध में, मैं तुम्हारी सभी उपाधियाँ फेंक देता हूँ..
अल्लाह बख्श देश का हीरा था गांधी इस राष्ट्रवादी की हत्या के विरोध
में आप चुप रहकर,अहिंसा की आड़ में महात्मा से “हीरो” बनने का खेल, खेल रहे थे ..
१४ मई १९४३. मुस्लिम लीग द्वारा अल्लाह बख्श की हत्या
—
स्वतंत्रता संग्राम का एक गुमनाम नायक
स्वतंत्रता संग्राम के महान योद्धा अल्लाह बख्श की शहादत के ७० साल होने वाले हैं। लेकिन उनकी कुर्बानी और योगदान से लोग आमतौर पर अनभिज्ञ हैं।
ज्यादा दुखद तो यह है कि हमारी सरकार ने भी अल्ला बख्श के बलिदान के बारे में
चुप्पी साध रखी है।
अल्लाह बख्श सिंध प्रांत (अब पाकिस्तान) में इत्तिहाद पार्टी के
नेता थे। इत्तिहाद पार्टी सिंध के हिंदुओं-मुसलमानों की एक साझा पार्टी थी। 1942
में भारत छोड़ो आंदोलन का आह्वान हुआ, तो
अल्लाह बख्श के नेतृत्व में सिंध में इसी पार्टी की सरकार थी। जब इंग्लैंड के प्रधानमंत्री
चर्चिल ने इंग्लैंड की पार्लियामेंट में भारत छोड़ो आंदोलन के बारे में अपशब्द कहे,
तो सिंध के इस मुख्यमंत्री ने कांग्रेस का सदस्य न होने के बावजूद
अंग्रेज सरकार की तमाम उपाधियों को लौटा दिया। इस नाफरमानी से नाराज गवर्नर ने 10
अक्तूबर, 1942 को उनकी सरकार बर्खास्त कर दी।
सिंध हालांकि मुस्लिम बहुल राज्य था, लेकिन
अल्लाह बख्श ने वहां कभी मुस्लिम लीग को पैर जमाने का मौका नहीं दिया। वह अल्लाह
बख्श ही थे, जिन्होंने मुस्लिम लीग के पाकिस्तान प्रस्ताव के
खिलाफ पूरे देश के मुस्लिम संगठनों और नेताओं को एक मंच पर जमा करने का बीड़ा
उठाया। 1940 में उन्होंने मुस्लिम लीग विरोधी जनाधार वाले
मुसलमान नेताओं के साथ मिलकर ‘आजाद मुस्लिम कांफ्रेंस’
का दिल्ली में आयोजन किया, जिसमें देश भर के 1,400
प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया था। उस समय ज्यादातर अंग्रेजी अखबार
लीग समर्थक थे, पर उन्हें भी यह मानना पड़ा था कि यह देश के
मुसलमानों का प्रतिनिधित्व करने वाला सबसे बड़ा आयोजन था। इसमें पिछड़े व कामगार
मुसलमानों की संस्थाओं की बड़े पैमाने पर हिस्सेदारी थी। दिल्ली के कंपनी बाग में
एक विशाल जन समूह के सामने मुस्लिम लीग और हिंदू महासभा के द्विराष्ट्रवाद
सिद्धांत की धज्जियां उड़ाते हुए उन्होंने पूछा था कि मुसलमान एक राष्ट्र होते,
तो वे इतने सारे अरब राष्ट्रों में क्यों बंटे होते? उनका तर्क था कि ‘पाकिस्तान की योजना अव्यावहारिक
है। यह पूरे देश के लिए और खासकर मुसलमानों के लिए हानिकारक है।’
वह मुस्लिम लीग के लिए एक बड़ा रोड़ा साबित हो रहे थे। 1942 में उनकी सरकार की बर्खास्ती के बाद सिंध प्रांत में मुस्लिम लीग ने वीर
सावरकर के नेतृत्व वाली हिंदू महासभा के साथ मिलकर मिली-जुली सरकार बनाई। लीग के
लोग इससे खुश नहीं हुए। 14 मई, 1943 को
मुस्लिम लीग ने एक षड्यंत्र करके उनकी हत्या करा दी। उनकी हत्या के बाद सिंध
प्रांत में मुस्लिम लीग को फैलने से कोई नहीं रोक सका।
आजादी के बाद पाकिस्तान के हुक्मरानों ने तो इतिहास के पन्नों से इस
बहादुर स्वतंत्रता सेनानी के कारनामों को मिटा दिया। लेकिन अखंड भारत के इस महान
समर्थक को हम क्यों भूल गए?
==
१. जय-जय वीर
सावरकर.., पढ़े.., इतिहास के कब्र में दफ़न , अनकही सच्चाई... (२८ मई को
सावरकर के जन्म दिवस पर विशेष .... ) जिन्होंने अंग्रेजों के काटों को काटने
के बाद, ४० से अधिक कांटो के बारे में भविष्यवाणी की थी
२. आज इसी काँटों की वजह से शेर दिल देशवासी खून से लहूलुहान है...,
राष्ट्रवाद के प्रति उसका खून सूख गया ..., इसी
वजह से सत्ता-नौकरशाही-माफिया-मीडिया-कॉर्पोरेट इस देश की
सुखी धरती में कारपेट के सुखी जीवन से गरीबों का निवाला छीनकर अपना पेट भर रहें
हैं..
३, वीर सावरकर ने १९४२ के आन्दोलन को कांग्रेस
की चाटुकारिता को देख कर भविष्यवाणी कर दी थी..., यह “भारत छोडो” आन्दोलन नहीं “भारत
तोड़ो” के खेल का आन्दोलन है..
४ देश के विभाजन से पहले मुस्लिम लीग की नापाक योजनाओं के खिलाफ
हिन्दुस्तान के मुसलबानों को जमीनी स्तर पर एक रूप से एक जुट करने वाले अल्लाह
बख्श अज्ञात व्यक्ती नहीं थे..
५. वे १९४२ के भारत छोड़ों आन्दोलन के दौरान इत्तेहाद पार्टी (एकता
पार्टी) के नेता के रूप में वहां के प्रधानमंत्री बनें , इस
पार्टी ने सिंध में मुस्लिम लीग को पैर जमाने नहीं दिया
६. अल्लाह बख्श और उनकी पार्टी कांग्रेस के साथ नहीं थी लेकिन जब
ब्रिटिश प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल ने ब्रिटिश संसद में अपने भाषण में “भारत छोड़ों” आन्दोलन पर अपमान जनक टिप्पणी की तो
अल्लाह बख्श ने विरोध ब्रिटिश सरकार की सभी उपाधियां लौटा दी.
७. ब्रिटिश शासन उनके विरोध को पचा नहीं पाया और गवर्नर सर ह्युग
डाव ने १० अक्टूबर १९४२ में उन्हें बर्खास्त कर दिया..., अखंड
हिंदुस्तान की आजादी के लिए एक मुसलबान का यह महान त्याग इतिहास के अंधेरे में दबा
दिया
८. मुस्लिम लीग को इस महान योद्धा को ख़त्म करना जरूरी हो गया था
क्योंकि वे पकिस्तान के विरोध में भारत भर में आम मुसलमानों को एकजुट करने में सफल
हो रहे थे.
९. इसके अलावा एक धर्म निरपेक्षता वादी नेता और पकिस्तान के निर्माण
के विरोधी के रूप में सिंध में बेहद लोकप्रिय थे और पकिस्तान के गठन में बड़ा रोड़ा
थे क्योंकि सिंध के बिना पश्चिमी क्षेत्र में इस्लामी राष्ट्र का गठन हो ही नहीं
सकता था.
१०. १४ मई १९४३ में अल्लाह बख्श की ह्त्या, मुस्लिम
लीग के भाड़े के हत्यारों द्वारा कर दी गई..
११. यह सर्व विदित तथ्य है कि १९४२ में अल्लाह बख्श सरकार की
बर्खास्ती और १९४३ में उनकी ह्त्या ने मुस्लिम लीग के प्रवेश का रास्ता साफ़ कर
दिया था की राजनैतिक व शारीरिक ह्त्या और उनकी सांप्रदायिक विरोधी राजनीती को चोट
पहुँचाने में ब्रिटिश शासकों और मुस्लिम लीग की सैंड सांठ गांठ से हिन्दुस्थान को
खंडित करने का रास्ता साफ़ से सफल हो गया
१२ . वीर सावरकर ने अल्लाह बख्श की बर्खास्ती.., इस राष्ट्रवादी के जज्बे की भूरी-भूरी प्रशंसा की व उनकी ह्त्या का विरोध
कर “एक सच्चा हिन्दुस्थानी” का बलिदान ,
कह सम्मान दिया.., जबकि कांग्रेस के नेहरू व
गांधी मुंह में पट्टी बांधकर.., अहिंसा का जाप जपते रहे...
सन १९४२, मैं
सिंध का प्रधानमंत्री अल्लाह बख्श..,मै, हिन्दुस्थान के टुकड़े होने नहीं दूंगा.., चर्चिल..,
आपके अखंड हिन्दुस्थान की अपमान जनक टिप्पणी के विरोध में, मैं तुम्हारी सभी उपाधियाँ फेंक देता हूँ..
अल्लाह बख्श देश का हीरा था गांधी इस राष्ट्रवादी की हत्या के विरोध में आप चुप रहकर,अहिंसा की आड़ में महात्मा से “हीरो” बनने का खेल, खेल रहे थे ..
अल्लाह बख्श देश का हीरा था गांधी इस राष्ट्रवादी की हत्या के विरोध में आप चुप रहकर,अहिंसा की आड़ में महात्मा से “हीरो” बनने का खेल, खेल रहे थे ..
१४ मई १९४३. मुस्लिम लीग द्वारा अल्लाह बख्श की हत्या
—
स्वतंत्रता संग्राम का एक गुमनाम नायक
स्वतंत्रता संग्राम के महान योद्धा अल्लाह बख्श की शहादत के ७० साल होने वाले हैं। लेकिन उनकी कुर्बानी और योगदान से लोग आमतौर पर अनभिज्ञ हैं। ज्यादा दुखद तो यह है कि हमारी सरकार ने भी अल्ला बख्श के बलिदान के बारे में चुप्पी साध रखी है।
अल्लाह बख्श सिंध प्रांत (अब पाकिस्तान) में इत्तिहाद पार्टी के नेता थे। इत्तिहाद पार्टी सिंध के हिंदुओं-मुसलमानों की एक साझा पार्टी थी। 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन का आह्वान हुआ, तो अल्लाह बख्श के नेतृत्व में सिंध में इसी पार्टी की सरकार थी। जब इंग्लैंड के प्रधानमंत्री चर्चिल ने इंग्लैंड की पार्लियामेंट में भारत छोड़ो आंदोलन के बारे में अपशब्द कहे, तो सिंध के इस मुख्यमंत्री ने कांग्रेस का सदस्य न होने के बावजूद अंग्रेज सरकार की तमाम उपाधियों को लौटा दिया। इस नाफरमानी से नाराज गवर्नर ने 10 अक्तूबर, 1942 को उनकी सरकार बर्खास्त कर दी।
सिंध हालांकि मुस्लिम बहुल राज्य था, लेकिन अल्लाह बख्श ने वहां कभी मुस्लिम लीग को पैर जमाने का मौका नहीं दिया। वह अल्लाह बख्श ही थे, जिन्होंने मुस्लिम लीग के पाकिस्तान प्रस्ताव के खिलाफ पूरे देश के मुस्लिम संगठनों और नेताओं को एक मंच पर जमा करने का बीड़ा उठाया। 1940 में उन्होंने मुस्लिम लीग विरोधी जनाधार वाले मुसलमान नेताओं के साथ मिलकर ‘आजाद मुस्लिम कांफ्रेंस’ का दिल्ली में आयोजन किया, जिसमें देश भर के 1,400 प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया था। उस समय ज्यादातर अंग्रेजी अखबार लीग समर्थक थे, पर उन्हें भी यह मानना पड़ा था कि यह देश के मुसलमानों का प्रतिनिधित्व करने वाला सबसे बड़ा आयोजन था। इसमें पिछड़े व कामगार मुसलमानों की संस्थाओं की बड़े पैमाने पर हिस्सेदारी थी। दिल्ली के कंपनी बाग में एक विशाल जन समूह के सामने मुस्लिम लीग और हिंदू महासभा के द्विराष्ट्रवाद सिद्धांत की धज्जियां उड़ाते हुए उन्होंने पूछा था कि मुसलमान एक राष्ट्र होते, तो वे इतने सारे अरब राष्ट्रों में क्यों बंटे होते? उनका तर्क था कि ‘पाकिस्तान की योजना अव्यावहारिक है। यह पूरे देश के लिए और खासकर मुसलमानों के लिए हानिकारक है।’
वह मुस्लिम लीग के लिए एक बड़ा रोड़ा साबित हो रहे थे। 1942 में उनकी सरकार की बर्खास्ती के बाद सिंध प्रांत में मुस्लिम लीग ने वीर सावरकर के नेतृत्व वाली हिंदू महासभा के साथ मिलकर मिली-जुली सरकार बनाई। लीग के लोग इससे खुश नहीं हुए। 14 मई, 1943 को मुस्लिम लीग ने एक षड्यंत्र करके उनकी हत्या करा दी। उनकी हत्या के बाद सिंध प्रांत में मुस्लिम लीग को फैलने से कोई नहीं रोक सका।
आजादी के बाद पाकिस्तान के हुक्मरानों ने तो इतिहास के पन्नों से इस बहादुर स्वतंत्रता सेनानी के कारनामों को मिटा दिया। लेकिन अखंड भारत के इस महान समर्थक को हम क्यों भूल गए?
==स्वतंत्रता संग्राम के महान योद्धा अल्लाह बख्श की शहादत के ७० साल होने वाले हैं। लेकिन उनकी कुर्बानी और योगदान से लोग आमतौर पर अनभिज्ञ हैं। ज्यादा दुखद तो यह है कि हमारी सरकार ने भी अल्ला बख्श के बलिदान के बारे में चुप्पी साध रखी है।
अल्लाह बख्श सिंध प्रांत (अब पाकिस्तान) में इत्तिहाद पार्टी के नेता थे। इत्तिहाद पार्टी सिंध के हिंदुओं-मुसलमानों की एक साझा पार्टी थी। 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन का आह्वान हुआ, तो अल्लाह बख्श के नेतृत्व में सिंध में इसी पार्टी की सरकार थी। जब इंग्लैंड के प्रधानमंत्री चर्चिल ने इंग्लैंड की पार्लियामेंट में भारत छोड़ो आंदोलन के बारे में अपशब्द कहे, तो सिंध के इस मुख्यमंत्री ने कांग्रेस का सदस्य न होने के बावजूद अंग्रेज सरकार की तमाम उपाधियों को लौटा दिया। इस नाफरमानी से नाराज गवर्नर ने 10 अक्तूबर, 1942 को उनकी सरकार बर्खास्त कर दी।
सिंध हालांकि मुस्लिम बहुल राज्य था, लेकिन अल्लाह बख्श ने वहां कभी मुस्लिम लीग को पैर जमाने का मौका नहीं दिया। वह अल्लाह बख्श ही थे, जिन्होंने मुस्लिम लीग के पाकिस्तान प्रस्ताव के खिलाफ पूरे देश के मुस्लिम संगठनों और नेताओं को एक मंच पर जमा करने का बीड़ा उठाया। 1940 में उन्होंने मुस्लिम लीग विरोधी जनाधार वाले मुसलमान नेताओं के साथ मिलकर ‘आजाद मुस्लिम कांफ्रेंस’ का दिल्ली में आयोजन किया, जिसमें देश भर के 1,400 प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया था। उस समय ज्यादातर अंग्रेजी अखबार लीग समर्थक थे, पर उन्हें भी यह मानना पड़ा था कि यह देश के मुसलमानों का प्रतिनिधित्व करने वाला सबसे बड़ा आयोजन था। इसमें पिछड़े व कामगार मुसलमानों की संस्थाओं की बड़े पैमाने पर हिस्सेदारी थी। दिल्ली के कंपनी बाग में एक विशाल जन समूह के सामने मुस्लिम लीग और हिंदू महासभा के द्विराष्ट्रवाद सिद्धांत की धज्जियां उड़ाते हुए उन्होंने पूछा था कि मुसलमान एक राष्ट्र होते, तो वे इतने सारे अरब राष्ट्रों में क्यों बंटे होते? उनका तर्क था कि ‘पाकिस्तान की योजना अव्यावहारिक है। यह पूरे देश के लिए और खासकर मुसलमानों के लिए हानिकारक है।’
वह मुस्लिम लीग के लिए एक बड़ा रोड़ा साबित हो रहे थे। 1942 में उनकी सरकार की बर्खास्ती के बाद सिंध प्रांत में मुस्लिम लीग ने वीर सावरकर के नेतृत्व वाली हिंदू महासभा के साथ मिलकर मिली-जुली सरकार बनाई। लीग के लोग इससे खुश नहीं हुए। 14 मई, 1943 को मुस्लिम लीग ने एक षड्यंत्र करके उनकी हत्या करा दी। उनकी हत्या के बाद सिंध प्रांत में मुस्लिम लीग को फैलने से कोई नहीं रोक सका।
आजादी के बाद पाकिस्तान के हुक्मरानों ने तो इतिहास के पन्नों से इस बहादुर स्वतंत्रता सेनानी के कारनामों को मिटा दिया। लेकिन अखंड भारत के इस महान समर्थक को हम क्यों भूल गए?
१. जय-जय वीर
सावरकर.., पढ़े.., इतिहास के कब्र में दफ़न , अनकही सच्चाई... (२८ मई को
सावरकर के जन्म दिवस पर विशेष .... ) जिन्होंने अंग्रेजों के काटों को काटने
के बाद, ४० से अधिक कांटो के बारे में भविष्यवाणी की थी
२. आज इसी काँटों की वजह से शेर दिल देशवासी खून से लहूलुहान है..., राष्ट्रवाद के प्रति उसका खून सूख गया ..., इसी वजह से सत्ता-नौकरशाही-माफिया-मीडिया-कॉर्पोरेट इस देश की सुखी धरती में कारपेट के सुखी जीवन से गरीबों का निवाला छीनकर अपना पेट भर रहें हैं..
३, वीर सावरकर ने १९४२ के आन्दोलन को कांग्रेस की चाटुकारिता को देख कर भविष्यवाणी कर दी थी..., यह “भारत छोडो” आन्दोलन नहीं “भारत तोड़ो” के खेल का आन्दोलन है..
४ देश के विभाजन से पहले मुस्लिम लीग की नापाक योजनाओं के खिलाफ हिन्दुस्तान के मुसलबानों को जमीनी स्तर पर एक रूप से एक जुट करने वाले अल्लाह बख्श अज्ञात व्यक्ती नहीं थे..
५. वे १९४२ के भारत छोड़ों आन्दोलन के दौरान इत्तेहाद पार्टी (एकता पार्टी) के नेता के रूप में वहां के प्रधानमंत्री बनें , इस पार्टी ने सिंध में मुस्लिम लीग को पैर जमाने नहीं दिया
६. अल्लाह बख्श और उनकी पार्टी कांग्रेस के साथ नहीं थी लेकिन जब ब्रिटिश प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल ने ब्रिटिश संसद में अपने भाषण में “भारत छोड़ों” आन्दोलन पर अपमान जनक टिप्पणी की तो अल्लाह बख्श ने विरोध ब्रिटिश सरकार की सभी उपाधियां लौटा दी.
७. ब्रिटिश शासन उनके विरोध को पचा नहीं पाया और गवर्नर सर ह्युग डाव ने १० अक्टूबर १९४२ में उन्हें बर्खास्त कर दिया..., अखंड हिंदुस्तान की आजादी के लिए एक मुसलबान का यह महान त्याग इतिहास के अंधेरे में दबा दिया
८. मुस्लिम लीग को इस महान योद्धा को ख़त्म करना जरूरी हो गया था क्योंकि वे पकिस्तान के विरोध में भारत भर में आम मुसलमानों को एकजुट करने में सफल हो रहे थे.
९. इसके अलावा एक धर्म निरपेक्षता वादी नेता और पकिस्तान के निर्माण के विरोधी के रूप में सिंध में बेहद लोकप्रिय थे और पकिस्तान के गठन में बड़ा रोड़ा थे क्योंकि सिंध के बिना पश्चिमी क्षेत्र में इस्लामी राष्ट्र का गठन हो ही नहीं सकता था.
१०. १४ मई १९४३ में अल्लाह बख्श की ह्त्या, मुस्लिम लीग के भाड़े के हत्यारों द्वारा कर दी गई..
११. यह सर्व विदित तथ्य है कि १९४२ में अल्लाह बख्श सरकार की बर्खास्ती और १९४३ में उनकी ह्त्या ने मुस्लिम लीग के प्रवेश का रास्ता साफ़ कर दिया था की राजनैतिक व शारीरिक ह्त्या और उनकी सांप्रदायिक विरोधी राजनीती को चोट पहुँचाने में ब्रिटिश शासकों और मुस्लिम लीग की सैंड सांठ गांठ से हिन्दुस्थान को खंडित करने का रास्ता साफ़ से सफल हो गया
१२ . वीर सावरकर ने अल्लाह बख्श की बर्खास्ती.., इस राष्ट्रवादी के जज्बे की भूरी-भूरी प्रशंसा की व उनकी ह्त्या का विरोध कर “एक सच्चा हिन्दुस्थानी” का बलिदान , कह सम्मान दिया.., जबकि कांग्रेस के नेहरू व गांधी मुंह में पट्टी बांधकर.., अहिंसा का जाप जपते रहे...
२. आज इसी काँटों की वजह से शेर दिल देशवासी खून से लहूलुहान है..., राष्ट्रवाद के प्रति उसका खून सूख गया ..., इसी वजह से सत्ता-नौकरशाही-माफिया-मीडिया-कॉर्पोरेट इस देश की सुखी धरती में कारपेट के सुखी जीवन से गरीबों का निवाला छीनकर अपना पेट भर रहें हैं..
३, वीर सावरकर ने १९४२ के आन्दोलन को कांग्रेस की चाटुकारिता को देख कर भविष्यवाणी कर दी थी..., यह “भारत छोडो” आन्दोलन नहीं “भारत तोड़ो” के खेल का आन्दोलन है..
४ देश के विभाजन से पहले मुस्लिम लीग की नापाक योजनाओं के खिलाफ हिन्दुस्तान के मुसलबानों को जमीनी स्तर पर एक रूप से एक जुट करने वाले अल्लाह बख्श अज्ञात व्यक्ती नहीं थे..
५. वे १९४२ के भारत छोड़ों आन्दोलन के दौरान इत्तेहाद पार्टी (एकता पार्टी) के नेता के रूप में वहां के प्रधानमंत्री बनें , इस पार्टी ने सिंध में मुस्लिम लीग को पैर जमाने नहीं दिया
६. अल्लाह बख्श और उनकी पार्टी कांग्रेस के साथ नहीं थी लेकिन जब ब्रिटिश प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल ने ब्रिटिश संसद में अपने भाषण में “भारत छोड़ों” आन्दोलन पर अपमान जनक टिप्पणी की तो अल्लाह बख्श ने विरोध ब्रिटिश सरकार की सभी उपाधियां लौटा दी.
७. ब्रिटिश शासन उनके विरोध को पचा नहीं पाया और गवर्नर सर ह्युग डाव ने १० अक्टूबर १९४२ में उन्हें बर्खास्त कर दिया..., अखंड हिंदुस्तान की आजादी के लिए एक मुसलबान का यह महान त्याग इतिहास के अंधेरे में दबा दिया
८. मुस्लिम लीग को इस महान योद्धा को ख़त्म करना जरूरी हो गया था क्योंकि वे पकिस्तान के विरोध में भारत भर में आम मुसलमानों को एकजुट करने में सफल हो रहे थे.
९. इसके अलावा एक धर्म निरपेक्षता वादी नेता और पकिस्तान के निर्माण के विरोधी के रूप में सिंध में बेहद लोकप्रिय थे और पकिस्तान के गठन में बड़ा रोड़ा थे क्योंकि सिंध के बिना पश्चिमी क्षेत्र में इस्लामी राष्ट्र का गठन हो ही नहीं सकता था.
१०. १४ मई १९४३ में अल्लाह बख्श की ह्त्या, मुस्लिम लीग के भाड़े के हत्यारों द्वारा कर दी गई..
११. यह सर्व विदित तथ्य है कि १९४२ में अल्लाह बख्श सरकार की बर्खास्ती और १९४३ में उनकी ह्त्या ने मुस्लिम लीग के प्रवेश का रास्ता साफ़ कर दिया था की राजनैतिक व शारीरिक ह्त्या और उनकी सांप्रदायिक विरोधी राजनीती को चोट पहुँचाने में ब्रिटिश शासकों और मुस्लिम लीग की सैंड सांठ गांठ से हिन्दुस्थान को खंडित करने का रास्ता साफ़ से सफल हो गया
१२ . वीर सावरकर ने अल्लाह बख्श की बर्खास्ती.., इस राष्ट्रवादी के जज्बे की भूरी-भूरी प्रशंसा की व उनकी ह्त्या का विरोध कर “एक सच्चा हिन्दुस्थानी” का बलिदान , कह सम्मान दिया.., जबकि कांग्रेस के नेहरू व गांधी मुंह में पट्टी बांधकर.., अहिंसा का जाप जपते रहे...
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