कल के पुतले बने आज के वोट बैंक के चेहरे.., हर चौराहे बने राजनीती के मोहरे
.., मोह भंग से .., मुंह चुराता
लोकतंत्र .., अब बन गया है सत्ता से लूट तंत्र का मंत्र..!!!!
Repost , २३ जनवरी २०१५जरूर पढ़े...,
११८ वी जन्म तिथी पर..., कब उठेगा नेताजी सुभाष
चंद्र बोस के रहस्य से पर्दा?
सुभाष चन्द्र बोस जी ब्रिटिशों के पुतले तोड़ने का कार्य शुरू मत करों...
सबूत के साथ, आप जिन्दगी भर जेल में कैद रहोगे....
१. देश के इस अमीर घराने के तेजस्वी युवक को राष्ट्र के प्रती जूनून को वीर सावरकर ने यह कहकर राष्ट्रीय राजनीती में आने के लिए प्ररित प्रेरित किया , वे नहीं चाहते थे कि सुभाष चन्द्र बोस बंगाल तक ही सिमटे रहें... नेताजी ने अपनी प्रारंभिक पढ़ाई कटक के रेवेंशॉव कॉलेजिएट स्कूल में हुई। तत्पश्चात् उनकी शिक्षा कलकत्ता के प्रेज़िडेंसी कॉलेज और स्कॉटिश चर्च कॉलेज से हुई, और बाद में भारतीय प्रशासनिक सेवा (इण्डियन सिविल सर्विस) की तैयारी के लिए उनके माता-पिता ने बोस को इंग्लैंड के केंब्रिज विश्वविद्यालय भेज दिया। अँग्रेज़ी शासन काल में भारतीयों के लिए सिविल सर्विस में जाना बहुत कठिन था किंतु उन्होंने सिविल सर्विस की परीक्षा में चौथा स्थान प्राप्त किया।
२. वीर सावरकर की पुस्तक “१८५७ एक स्वतंत्रता संग्राम” पढ़ कर ऐसे भी सुभाष चन्द्र बोस की रगों में खून बढ़ गया था..,
३. नेताजी सुभाष चन्द्र बोस तो वीर सावरकर को अपना गुरू मानते थे , वे पूना में उनके घर जाकर भावी योजनाओं के बारे में चर्चा करते थे.
४. नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को सावरकर ने हिटलर से मिलकर, देश को आजाद कराने में सहयोग की वार्ता करने को कहा
५. हिटलर के सन्देश से कि “हिन्दुस्तान को आजाद कराना मेरे बांये हाथ का खेल है,” बशर्ते हिन्दुस्तान पर जर्मनी का अधिकार रहेगा, हिटलर के इस सन्देश को सावरकर के कहने पर सुभाष चन्द्र बोस ने नकार दिया
६. अपने पढाई के दौरान एक बार कॉलेज के प्रिंसिपल ने उन्हें, BLOODY INDIAN कहा तो उनके दिल में ब्रिटिश सरकार को उखाड़ फेंकने का जूनून पैदा हो गया.
७. रंगून (बर्मा) मैं , लाखों की संख्या में नए रंगरूट, आजाद हिन्द फ़ौज में भर्ती के लिए आये थे.., तब उन्होंने एक स्वर में कहा, जो मेरी सेना में देश के लिए मरना चाहता है, उनके लिए मेरी सेना के दरवाजे खुलें हैं, और जिसे मंजूर हैं हाथ ऊपर करें, तब सभी हिन्दू ,मुस्लिम व अन्य धर्मों के रंगरूटों ने हाथ उठाते हुए , सेना में शामिल हुए
८. तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आजादी दूंगा, मुझे इतना खून चाहिए कि ब्रिटिश सरकार को मैं डूबोकर मार दूं..
९. राष्ट्रीय राजनीती में आने से पाहिले नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को हिन्दी नहीं आती थी, तब उन्के शिक्षक जगदीश नारायण तिवारी ने धाराप्रवाह हिन्दी सिखाकर, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस जनसभाओं में हिन्दी मैं ही संबोधन कर एक नया जोश भर दिया था
१०. और नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, कहते थे, हिन्दी ही एक भाषा है, जो देश के विभिन्न राज्यों को अपनी भाषा की इर्ष्या को तोड़कर एक कड़ी में पिरो सकती है,
११. अब कुछ पढ़े.., भाजपा का U TURN...., राजनाथ सिंह ने चुनाव प्रचार के दौरान दावा किया था कि अगर नेता जी की मौत से जुड़े कागजातों को सार्वजनिक किया जाता है तो यह ज्यादा अच्छा होगा। लेकिन ऐसा लगता है कि पीएमओ राजनाथ की इस बात से इत्तेफाक नहीं रखता। पीएमओ ने आरटीआई के सेक्शन 8 (2) का हवाला दिया है। सेक्शन 8(2) के मुताबिक कोई भी जानकारी जो ऑफिशल सीक्रिट ऐक्ट,1923 के तहत आती है, उसे सार्वजनिक नहीं किया जा सकता है। हालांकि अथॉरिटी को यह हक है कि वह इन डॉक्युमेंट्स को सार्वजनिक कर सकती है, अगर उसे लगता है कि इससे लोगों के हितों को कोई नुकसान नहीं पहुंचेगा।
१२. बीजेपी ने एक बार फिर यू-टर्न लिया। जब बीजेपी सत्ता में नहीं थी तब सुभाष चंद्र बोस की मौत की गुत्थी सरकार से सार्वजनिक करने की मांग करती थी। अब बीजेपी सत्ता में आई तो इससे मुकर गई। नेताजी के रहस्यात्मक तरीके से गायब होने की करीब 39 क्लासिफाइड फाइल बीजेपी ने सार्वजनिक करने से इनकार कर दिया है। इससे पहले जब मनमोहन सिंह की सरकार थी तब बीजेपी के सीनियर नेता इन फाइलों को सार्वजनिक करने की मांग करते थे।
इस साल जनवरी में लोकसभा चुनावी कैंपेन के दौरान राजनाथ सिंह ने नेताजी के जन्मस्थान कटक में उनके 117वीं जयंती के मौके पर यूपीए सरकार से इनकी मौत से जुड़ी फाइलें सार्वजनिक करने की मांग की थी। उन्होंने कहा था कि देश के नागरिकों को अपने स्वतंत्रता सेनानी की मौत के बारे में जानने का हक है। अब राजनाथ सिंह केंद्रीय गृह मंत्री हैं। सिंह ने दावा किया था कि दस्तावेजों के सार्वजनिक करने में व्यापक जनहित जुड़ा है। लेकिन मोदी सरकार का पीएमओ इससे सहमत नहीं दिखाई देता जो कि उसके जवाब से झलकता है।
प्रधानमंत्री ऑफिस ने इस मसले पर दाखिल आरटीआई के जवाब में कहा है कि नेताजी की मौत से जुड़ी 41 फाइलें हैं, जिनमें से दो अनक्लासिफाइड फाइलें हैं। जवाब में मोदी सरकार ने कहा कि हम इन फाइलों को सार्वजनिक नहीं कर सकते। सरकार ने कहा कि हम इस मसले पर पूर्ववर्ती यूपीए सरकार की पोजिशन जारी रखेंगे। पीएमओ ने कहा, 'इन फाइलों को सार्वजनिक करने से विदेशी संबंधो पर असर पड़ेगा। इन फाइलों को हमें आरटीआई सेक्शन 8(1)(ए) और सेक्शन 8(2) के तहत सार्वजनिक करने से छूट मिलती है।
सुभाष चन्द्र बोस जी ब्रिटिशों के पुतले तोड़ने का कार्य शुरू मत करों...
सबूत के साथ, आप जिन्दगी भर जेल में कैद रहोगे....
१. देश के इस अमीर घराने के तेजस्वी युवक को राष्ट्र के प्रती जूनून को वीर सावरकर ने यह कहकर राष्ट्रीय राजनीती में आने के लिए प्ररित प्रेरित किया , वे नहीं चाहते थे कि सुभाष चन्द्र बोस बंगाल तक ही सिमटे रहें... नेताजी ने अपनी प्रारंभिक पढ़ाई कटक के रेवेंशॉव कॉलेजिएट स्कूल में हुई। तत्पश्चात् उनकी शिक्षा कलकत्ता के प्रेज़िडेंसी कॉलेज और स्कॉटिश चर्च कॉलेज से हुई, और बाद में भारतीय प्रशासनिक सेवा (इण्डियन सिविल सर्विस) की तैयारी के लिए उनके माता-पिता ने बोस को इंग्लैंड के केंब्रिज विश्वविद्यालय भेज दिया। अँग्रेज़ी शासन काल में भारतीयों के लिए सिविल सर्विस में जाना बहुत कठिन था किंतु उन्होंने सिविल सर्विस की परीक्षा में चौथा स्थान प्राप्त किया।
२. वीर सावरकर की पुस्तक “१८५७ एक स्वतंत्रता संग्राम” पढ़ कर ऐसे भी सुभाष चन्द्र बोस की रगों में खून बढ़ गया था..,
३. नेताजी सुभाष चन्द्र बोस तो वीर सावरकर को अपना गुरू मानते थे , वे पूना में उनके घर जाकर भावी योजनाओं के बारे में चर्चा करते थे.
४. नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को सावरकर ने हिटलर से मिलकर, देश को आजाद कराने में सहयोग की वार्ता करने को कहा
५. हिटलर के सन्देश से कि “हिन्दुस्तान को आजाद कराना मेरे बांये हाथ का खेल है,” बशर्ते हिन्दुस्तान पर जर्मनी का अधिकार रहेगा, हिटलर के इस सन्देश को सावरकर के कहने पर सुभाष चन्द्र बोस ने नकार दिया
६. अपने पढाई के दौरान एक बार कॉलेज के प्रिंसिपल ने उन्हें, BLOODY INDIAN कहा तो उनके दिल में ब्रिटिश सरकार को उखाड़ फेंकने का जूनून पैदा हो गया.
७. रंगून (बर्मा) मैं , लाखों की संख्या में नए रंगरूट, आजाद हिन्द फ़ौज में भर्ती के लिए आये थे.., तब उन्होंने एक स्वर में कहा, जो मेरी सेना में देश के लिए मरना चाहता है, उनके लिए मेरी सेना के दरवाजे खुलें हैं, और जिसे मंजूर हैं हाथ ऊपर करें, तब सभी हिन्दू ,मुस्लिम व अन्य धर्मों के रंगरूटों ने हाथ उठाते हुए , सेना में शामिल हुए
८. तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आजादी दूंगा, मुझे इतना खून चाहिए कि ब्रिटिश सरकार को मैं डूबोकर मार दूं..
९. राष्ट्रीय राजनीती में आने से पाहिले नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को हिन्दी नहीं आती थी, तब उन्के शिक्षक जगदीश नारायण तिवारी ने धाराप्रवाह हिन्दी सिखाकर, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस जनसभाओं में हिन्दी मैं ही संबोधन कर एक नया जोश भर दिया था
१०. और नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, कहते थे, हिन्दी ही एक भाषा है, जो देश के विभिन्न राज्यों को अपनी भाषा की इर्ष्या को तोड़कर एक कड़ी में पिरो सकती है,
११. अब कुछ पढ़े.., भाजपा का U TURN...., राजनाथ सिंह ने चुनाव प्रचार के दौरान दावा किया था कि अगर नेता जी की मौत से जुड़े कागजातों को सार्वजनिक किया जाता है तो यह ज्यादा अच्छा होगा। लेकिन ऐसा लगता है कि पीएमओ राजनाथ की इस बात से इत्तेफाक नहीं रखता। पीएमओ ने आरटीआई के सेक्शन 8 (2) का हवाला दिया है। सेक्शन 8(2) के मुताबिक कोई भी जानकारी जो ऑफिशल सीक्रिट ऐक्ट,1923 के तहत आती है, उसे सार्वजनिक नहीं किया जा सकता है। हालांकि अथॉरिटी को यह हक है कि वह इन डॉक्युमेंट्स को सार्वजनिक कर सकती है, अगर उसे लगता है कि इससे लोगों के हितों को कोई नुकसान नहीं पहुंचेगा।
१२. बीजेपी ने एक बार फिर यू-टर्न लिया। जब बीजेपी सत्ता में नहीं थी तब सुभाष चंद्र बोस की मौत की गुत्थी सरकार से सार्वजनिक करने की मांग करती थी। अब बीजेपी सत्ता में आई तो इससे मुकर गई। नेताजी के रहस्यात्मक तरीके से गायब होने की करीब 39 क्लासिफाइड फाइल बीजेपी ने सार्वजनिक करने से इनकार कर दिया है। इससे पहले जब मनमोहन सिंह की सरकार थी तब बीजेपी के सीनियर नेता इन फाइलों को सार्वजनिक करने की मांग करते थे।
इस साल जनवरी में लोकसभा चुनावी कैंपेन के दौरान राजनाथ सिंह ने नेताजी के जन्मस्थान कटक में उनके 117वीं जयंती के मौके पर यूपीए सरकार से इनकी मौत से जुड़ी फाइलें सार्वजनिक करने की मांग की थी। उन्होंने कहा था कि देश के नागरिकों को अपने स्वतंत्रता सेनानी की मौत के बारे में जानने का हक है। अब राजनाथ सिंह केंद्रीय गृह मंत्री हैं। सिंह ने दावा किया था कि दस्तावेजों के सार्वजनिक करने में व्यापक जनहित जुड़ा है। लेकिन मोदी सरकार का पीएमओ इससे सहमत नहीं दिखाई देता जो कि उसके जवाब से झलकता है।
प्रधानमंत्री ऑफिस ने इस मसले पर दाखिल आरटीआई के जवाब में कहा है कि नेताजी की मौत से जुड़ी 41 फाइलें हैं, जिनमें से दो अनक्लासिफाइड फाइलें हैं। जवाब में मोदी सरकार ने कहा कि हम इन फाइलों को सार्वजनिक नहीं कर सकते। सरकार ने कहा कि हम इस मसले पर पूर्ववर्ती यूपीए सरकार की पोजिशन जारी रखेंगे। पीएमओ ने कहा, 'इन फाइलों को सार्वजनिक करने से विदेशी संबंधो पर असर पड़ेगा। इन फाइलों को हमें आरटीआई सेक्शन 8(1)(ए) और सेक्शन 8(2) के तहत सार्वजनिक करने से छूट मिलती है।
No comments:
Post a Comment