आज ही के दिन ५२ साल पहिले..., एक महान
आत्मा का अंत .., चाय पर चर्चा अपने घर से खर्चा ..., जी हाँ एक प्रधानमंत्री ने फिल्म
अभिनेता मनोज कुमार को अपने घर चाय पर चर्चा अपने खर्चा पर बुलाकर कहा ..., “मनोज जी मैं न तो जवान दिखता हूँ न किसान.., लकिन १९६५
की पाकिस्तान से युद्ध में विजय की इस
ज्वाला से किसान व जवानों के हौसले बुलंद
रहें .., आप ऐसी फिल्म बनाओं ताकि इस मशाल के अन्वरित गाथा से हम पुन: इस विदेशी
हाथ.साथ विचार संस्कार से देश पुन: इस
बेडी में न फंसे ..,”
११ जनवरी १९६६ में शास्त्री की ह्त्या
के बाद फिल्म अभिनेता मनोज कुमार ने कहा मैंने जिस “जय जवान – जय किसान “ के लिए
फिल्म बनाई है वह इस दुनिया में अब नहीं रहा .., अब इस फिल्म का जोश एक राष्ट्रवाद
के समुन्द्र की गहराई से निकले बुलबुले की चंद दिनों बाद समुन्द्र की सतह में आकर
मौत हो जायेगी .., अर्थात मेरे इस “उपकार” फिल्म की जोश चंद दिनों में समाप्त हो
जाएगा ...
October 2, 2017 की वेबस्थल व फेस बुक की पुरानी
पोस्ट
यदि २ अक्टूबर को उनके अतुल्यनीय साहस
की प्रेरणा व आने वाले सालों में हम यह दिवस लाल बहादुर शास्त्री, की जयन्ती के रूप में मनाएं तो देश के युवकों में लाल
बहादुर शास्त्री के कार्यों से प्रेरित होकर, राष्ट्रवाद के
खून का संचार से, जो काम गांधी व नेहरू न कर सके, हम जल्द ही विश्व गुरू व सर्वोपरि हो जायेंगे..., दोस्तों
आप अपनी राय दें..११ जनवरी, आज एक महान फ़कीर प्रधानमंत्री
लाल बहादुर शास्त्री की ५२वी पुण्य तिथी पर अश्रुपूर्वक प्रणाम..,जय –जवान किसान का सलाम..,
अपने १८ महीनों के कार्यकाल में देश में अकाल व विदेशी आक्रमण के काल के गाल में निगलने वाले अजगरों को अपने फौलादी जिगर से परास्त कर दिया था . युद्द में पाकिस्तानी के पठान कोट के पठानों की कोट उतार कर दुश्मनों ने घुटने टेक दिए थे
१९६५ की लड़ाई की जीत की ५० वीं वर्ष गांठ में, मीडिया ने TRP की दौड़ में इसे जोर शोर से दिखाया जबकि शास्त्री के योगदान को नगण्य माना.., आज उनकी ५०वी पूण्य तिथी में देश में सन्नाटा ही नहीं, कांग्रेस व अन्य नेताओं में मुर्दानगी है
अपने १८ महीनों के कार्यकाल में देश में अकाल व विदेशी आक्रमण के काल के गाल में निगलने वाले अजगरों को अपने फौलादी जिगर से परास्त कर दिया था . युद्द में पाकिस्तानी के पठान कोट के पठानों की कोट उतार कर दुश्मनों ने घुटने टेक दिए थे
१९६५ की लड़ाई की जीत की ५० वीं वर्ष गांठ में, मीडिया ने TRP की दौड़ में इसे जोर शोर से दिखाया जबकि शास्त्री के योगदान को नगण्य माना.., आज उनकी ५०वी पूण्य तिथी में देश में सन्नाटा ही नहीं, कांग्रेस व अन्य नेताओं में मुर्दानगी है
आज उनकी मृत्यु के ५२ साल बाद भी.., देश, विदेशी आक्रमण के घावों से घायल होकर.., हम, अपने घायल होने का सबूत देकर, विश्व से गुहार लगा रहें है .
एक ५० इन्च की काया व ५६/२ =२८ इंच के सीने वाले प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने कहा था हम शांति के पक्षधर है .., यदि किसी ने देश की तरफ बुरी निगाह डाली तो उसकी आँखें फोड़ दी जायेगी...
गरीबी अभिशाप नहीं होती है..इसे उन्होंने प्रमाणित किया था , वे इतने गरीब थे कि उनके पास चाय पीने के भी पैसे नहीं थे .., देश के कुओं के पानी का स्वाद व देश की माटी की खुशबू के महक ही उनके सफलता की सीढ़ी थी
काश.., मोदीजे, यदि आज नोटों पर लालबहादुर शास्त्री का चित्र छापते तो नयी पीढी उनके आदर्शों से अभिभूत होकर देश को एक नई दिशा के ओर अग्रसर होती .
.
(गांधी व कांग्रेस की २०० भयंकर भूले , Deshdoooba Community या वेबसाईट पर कृपया गौर से पढ़े )
१.लाल बहादुर शास्त्री ने अपने १८ महीने के शासन काल में नेहरू के १७ साल के कार्यकाल की गन्दगी साफ़ कर दी थी..
२.गांधी की गंदी राजनीती व जवाहर लाल नेहरू के जहर से देश ६८ साल के सत्ता परिवर्तन के शासन में कंगाल हो गया है...
३.शास्त्री जी के अल्प काल में, देश में राष्ट्रवादी भावना से जनता को ओत प्रोत कर, श्वेत क्रांती के साथ हरित क्रांती का जन्म हुआ, उनका आव्हान था शहर वालों, घर के आस पास जितनी भी खाली जमीन है उसमें अन्न उगाओ.., उनकी सादगी से जनता कायल थी , लेकिन कांग्रेसी घायल थे, उनकी अय्याशी पर रोक लगने से, भ्रष्टाचार ख़त्म कर उन्हें मजदूर बना दिया था
४. उन्होंने, पूरे देश को उन्होंने आव्हान किया की सोमवार को एक दिन का उपवास रखे , इसके पहिले उन्होंने कहा जब मेरा परिवार उपवास में सक्षम होगा तो ही मैं राष्ट्र को आव्हान करूंगा..
५. दक्षिण भारत जो हिन्दी विरोधी था उन्होंने भी इसका तहे दिल से अपनाया, व देश भर मे होटल बंद रहते थी,
नेहरू के दिन के २५ हजार के खर्च की जगह प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री महीने में मात्र ३०० रूपये में सरकारी वेतन से घर चलाते थे
उनकी जिदंगी एक अति सादगी व प्रधानमंमंत्री के रूप में सडक किनारे, रहने वाले एक गरीब जैसी थी ,
प्रधानमंत्री होने के बावजूद वे किराए के घर में रहते हुए उनकी रूस (मास्को) में ह्त्या हुई थी
७, लाल बहादुर शास्त्री हमेशा कहते थे सत्ता का स्वाद मत चखों..,देश की गरीबी के लिए काम करो, सत्ता के मद से अपने संस्कार मत बिगाड़ो, इसलिए उनके ६ बच्चे होने के बावजूद वंशवाद की परम्परा को तोड़ते ही अपन बच्चों को राजनीती में कदम रखने नहीं दिया, यहाँ तक की अपने बच्चो को सरकारी कार में बैठने नहीं देते थे..,
घर से प्रधानमंत्री दफ्तर में पहुँचाने के बाद सरकारी कार छोड़ देते थे, वे अन्य मंत्रियों से कहते थे आप इसका उपयोग करें
८.. आजादी के आन्दोलन में अंग्रेज जब भी, कांग्रेसी नेता गिरफ्तार होते थे तो उन्हें जेल में विशेष खाना जैसे हलवा पुरी मिलती थी ..., लाल बहादुर शास्त्री वे खाना अन्य कैदियों में बाँट देते थे , कहते ऐसे मालपुआ भोजन से मैं बीमार पड़ जाऊंगा, और अन्य कैदीयों को बांटकर, वे भी खुश रहते थे...
.जब उन्होंने रेल दुर्घटना की वजह से इस्तीफा दिया.., अगले दिन सरकारी घर खाली करने के पहले वे रात भर, बिना बिजली के रहे ..., कहा, मेरा पद चला गया है .., मैं सरकारी बिजली खर्च नहीं करूंगा ..
९.. प्रधानमंत्री बनने के बाद उनके घर में कूलर लगा देखकर, उस कूलर को यह कहते ही वापस कर दिया कि मेरे बच्चों को इसकी आदत नहीं डालनी है
१०... १९५२ से कांग्रेस के “चुनाव चिन्ह” में “दो बैलों की जोड़ी” से, जवाहरलाल नेहरू ने चुनावी नारा “आराम हराम है” के अपने अय्याशी पन को छिपाकर जीता , सत्ता में आते ही इन दो बैलों को सत्ता की विदेशी शराब पीला कर बेहोशी में रखा.... और बिना किसान के, देश की उपजाऊ जमीन को बंजर बनाकर , देश में भूखमरी पैदाकर, विदेशी अनाज से देशवासियों का लालन पालन किया, हमें ऐसा घटिया/सड़ा अनाज खिलाने को मजबूर किया गया, जो कि अमेरिका के सूअर भी नहीं खाते थे ... हमारे सेना के जवानों के हाथों में बन्दूक थमाने की बजाय “शांती का गुलाबी फूल” थमा दिया .... और “हिन्दी –चीनी , भाई-भाई” के नारे में उसकी महक डालने से, नोबल पुरूस्कार जीतने की महत्वकांक्षा में सेना को नो बल कर दिया... हमारे से दो साल बाद, आजाद हुए “चीन” ने अपनी ताकत बढाते हुए .... मौके की ताक में हमारे देश ४६ हजार वर्ग किलोमीटर पर कब्जा कर , नेहरू को थप्पड़ मार कर , नेहरू का नारा “हिन्दी –चीनी , खाई –खाई” मे बदल दिया और नेहरू का “शांती” के नारें की देशवासियों के सामने पोल खोल दी
११. जवाहर लाल नेहरू की मौत के बाद . प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री ने इन दो बैलों का किसान बनकर ,अपने सवा चार फीट की काया को, राष्ट्रवादी बल से , इन अपाहिज हुए जवानों व किसानों में एक नया आत्मबल डाल कर , “जय जवान – जय किसान” के नारा को १९ महीने में सार्थक बना दिया. लेकिन...., देश के कांग्रेसी तो वंशवाद से भयभीत थे ... लेकिन उससे कहीं ज्यादा भयभीत विदेशी ताकतें थी, उन्हें अहसास हो चुका था {यदि हमारा देश दो साल और “राष्ट्रवादी प्रवाह” से चलेगा तो हम हिन्दुस्तान आत्मनिर्भर बन जाएगा, और कोई ताकत उस पर राज नहीं कर सकेंगी} इसलिए , देश के “लाल” को सुनोयोजित षड़यंत्र से मारकर, उन्हें दूध में जहर दे कर “नीली” काया में उनके पार्थीव शरीर को लाया गया , हमारे देशी कांग्रेसी ताकतों ने भी इसे हृद्याधात से प्राकृतिक मौत से, बिना पोस्टमार्टम के, डर से... कही पोस्टमार्टम करने पर , देशी व विदेशी ताकतों का पोस्टमार्टम न हो जाए ... आनन – फानन में प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री का शव दाह कर दिया , उनकी पत्नी अंत तक गुहार लगाती रही , मेरे पति की हत्या की जांच हो...
१२. ये वही काग्रेसी थे, जिन्होने लाल बहादुर शास्त्री की मौत के बाद , उन पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाकर उनके किराए के घर मे घुसकर धावा बोला, तब उनकी पत्नी ललिता शास्त्री ने अपनी अलमारी खोलकर कांग्रेसीयो को दिखाते हुए कहा , देखो?, ये मेरा काला धन है, ये हमारी सपत्ति है, कांग्रेसीयो ने छान बीन की तो उसमे , लाल बहादुर शास्त्री के नाम पर कुछ कागज मिले , उन कांग्रेसीयों को लगा कि इसमे लाल बहादुर शास्त्री के अचल व काले धन की संपत्ति के दस्तावेज हैं.
जब कांग्रेसीयो ने दस्तावेजों को खंगाला तो वह बैक के कर्ज के पेपर निकले, जो लाल बहादुर शास्त्री ने, प्रधानमंत्री के कार्यकाल मे, अपनी नीजी कार, बैक के कर्ज से खरीदी थी, और कर्ज अदायगी मे असमर्थ होने पर, बाद मे वह कार बैक को लौटा दी थी. तो वे उन सभी काग्रेसीयों के चेहरे उतर गये और् उनके घर से खाली-हाथ मलते लौटे.
१३.उसी तरह लाल बहादुर शास्त्री की मौत के बाद, प्रधानमंत्री बनने के बाद, इंदिरा गाधी भी उनके किराए के घर गई, और उनका घर देखकर, अपना नाक सिकुडते हुए कहा.. “छी:… मिडल क्लास फैमिली” ( “छी:…मध्यम दर्जे का परिवार”)
१४.यह वही देश का लाल था , जिन्होने अपना जीवन देश को सर्मपित कर दिया था , और उस देश के लाल का मृत शरीर , विदेश से नीले रंग (मृत शरीर का नीला रंग, दर्शाता है कि शरीर मे विष का अंश है) मे आया, तो न कोई जाँच न कोई, न कोई पोस्ट मार्टम (शव विच्छेदन), आनन फानन मे अंतिम क्रिया कर दी गई,.ताकि मौत का रहस्य दब जायें?.
किसी ने अय्याशी की
किसी ने तानाशाही की
किसी ने वतन लूटा
किसी ने कफ़न लूटा
किसी ने देशवासियों को घोटाले की फ़ौज से मौज कर.., घोंट दिया
प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्रीजी आपकी 52वी पुण्य तिथि का पुण्य देश पर है, हमारा प्रणाम , आपने शास्त्र के शास्त्र से जीत का मंत्र दिया , आज के सत्ताखोरों ने तुम्हारे आदर्शों को भूलाकर भ्रष्टाचार से देश को डूबों दिया
देशी –विदेशी शक्तियों ने जय जवान – जय किसान के रखवाले की ह्त्या कर , देश की हरियाली ख़त्म कर दी...
January 11, 2015 ·की पुरानी का अभी भी है दमखंभ
शास्त्रीजी.., आप रूस मत जाओ.., हम जीते हुए
राष्ट्र है, विदेशी राष्ट्राध्यक्षों को हमारे देश बुलाओं ,
आप रूस जाओगे तो वापस नहीं आओगें और हमारे द्वारा जीता भाग भी लुटा
आओगे..
१. ताशकंद जाने से पहले वीर सावरकर ने लालबहादुर शास्त्री को चेताया और कहा “शास्त्रीजी हम जीते हुए राष्ट्र है , रूस के प्रधान्मत्री को हमारे देश मे बुलाओ, यदि आप ताशकंद जाओगे तो वापस नही आओगे.. और हमारे द्वारा जीता भाग भी लुटाआओगे..
उनकी यह भविष्यवाणी सच हुई,
२. ९ जनवरी १९६६ की रात लालबहादुर शास्त्री ने ताशकंद से अपनी पत्नी ललिता शास्त्री को फोन कर कहा “मैं हिन्दुस्तान आना चाहता हूँ, यहां, मुझ पर हस्ताक्षर करने के लिए दवाब डाल रहें है..., मुझे यहां घुटन हो रही है...
देश के सत्ता की राजनयिक फौजे बार-बार, शास्त्रीजी से कह रही थी..., भले हम युद्ध जीत गये हैं, यदि आप हस्ताक्षर नहीं करोगे तो आगे अन्तराष्ट्रीय बिरादरी एकजुट होकर देश की आर्थिक स्तिथी बिगाड़ देगी...
३. इसके बाद उनके कड़े मंसूबे, हमारे देश के सत्ता की राजनयिक फौजे तोड़ने में कामयाब हो गयी.., १० जनवरी १९६६ के शाम ४.३० बजे , शास्त्रीजी ने जीती हुई जमीन वापस लौटाने व शांती समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद, उनके पुत्र अनिल शास्त्री को कहा गया ..., वे देश के प्रधानमंत्री हैं, उनकी सुरक्षा के लिए उन्हें विशेष आवास में अकेले में सुरक्षित रखना होगा
प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के ताशकंद समझौते के बाद ८ घंटे के बाद , ११ जनवरी तड़के १ बजे,पाकिस्तानी रसोईये द्वारा रात को दूध पीने के बाद उनकी मौत हो गई, मौत के समय उनके कमरे मे टेलिफोन नही था, जबकि, उनके बगल के कमरे के राजनयिकों के कमरों मे टेलिफोन था, उनकी मौत की पुष्टी होने पर राजनयिकों की फौज दिल्ली मे फोन लगा कर चर्चा कर रहे थे कि अगला प्रधानमंत्री कौन होगा ?
४. अंत तक ललिता शास्त्री गुहार लगाती रही, मेरे पति की मौत की जाँच हो, आज तक सभी सरकारों द्वारा, कोइ कारवाई नही हुई?,
५. इस रहस्य को जानने के लिये, आर.टी.आई. कार्यकर्ता अनुज धर ने एडी चोटी का जोर लगाने के बाद, सरकार की तरफ से जवाब मिला कि यदि हम इस बात का खुलासा करेगें तो हमारे संबध दूसरे देशों से खराब हो जायेगें ?
६. और एक राष्ट्रवादी प्रधानमंत्री बेमौत, मौत् का शिकार हो गया., और…..? अपने परिवार के पीछे छोड गया……, सिर्फ और सिर्फ……?????, कर्ज का बोझ?.
७. देश का एक लाल, लाल बहादुर शास्त्री, जब प्रधानमंत्री बने, तब देश मे विकट परिस्थीतिया थी, देश भुखमरी के कगार मे पहुँच रहा था, सीमा पर दुशमनो की तोपें आग उगलने की तैयारी मे थी. जिन्होने “जय जवान – जय किसान” के नारे से दुश्मनों को सबक सीखाकर देश मे हरित क्रति के साथ-साथ श्वेत क्रांति की, प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की 19 महिने के प्रधानमंत्री के कार्यकाल की कामयाबी से नेहरू द्वारा किया गया भ्रष्टाचार का शौच साफ कर दिया था…., नेहरू के चमचे नेताओ की अय्याशी खत्म कर, उन्हे आम नेता बना दिया था…???
८. देश की जनता उनकी कायल थी, उनके आवाहन को जनता, सर आँखो मे रखकर , उन्हें देश का भाग्य – विधाता मानती थी,
९. उनकी साफ सुथरी छवि के कारण ही उन्हें 1964 में देश का प्रधानमन्त्री बनाया गया। उन्होंने अपने प्रथम संवाददाता सम्मेलन में कहा था कि उनकी शीर्ष प्राथमिकता खाद्यान्न मूल्यों को बढ़ने से रोकना है और वे ऐसा करने में सफल भी रहे। उनके क्रियाकलाप सैद्धान्तिक न होकर पूर्णत: व्यावहारिक और जनता की आवश्यकताओं के अनुरूप थे।
१०. निष्पक्ष रूप से यदि देखा जाये तो शास्त्रीजी का शासन काल बेहद कठिन रहा। पूँजीपति देश पर हावी होना चाहते थे और दुश्मन देश हम पर आक्रमण करने की फिराक में थे।
१. ताशकंद जाने से पहले वीर सावरकर ने लालबहादुर शास्त्री को चेताया और कहा “शास्त्रीजी हम जीते हुए राष्ट्र है , रूस के प्रधान्मत्री को हमारे देश मे बुलाओ, यदि आप ताशकंद जाओगे तो वापस नही आओगे.. और हमारे द्वारा जीता भाग भी लुटाआओगे..
उनकी यह भविष्यवाणी सच हुई,
२. ९ जनवरी १९६६ की रात लालबहादुर शास्त्री ने ताशकंद से अपनी पत्नी ललिता शास्त्री को फोन कर कहा “मैं हिन्दुस्तान आना चाहता हूँ, यहां, मुझ पर हस्ताक्षर करने के लिए दवाब डाल रहें है..., मुझे यहां घुटन हो रही है...
देश के सत्ता की राजनयिक फौजे बार-बार, शास्त्रीजी से कह रही थी..., भले हम युद्ध जीत गये हैं, यदि आप हस्ताक्षर नहीं करोगे तो आगे अन्तराष्ट्रीय बिरादरी एकजुट होकर देश की आर्थिक स्तिथी बिगाड़ देगी...
३. इसके बाद उनके कड़े मंसूबे, हमारे देश के सत्ता की राजनयिक फौजे तोड़ने में कामयाब हो गयी.., १० जनवरी १९६६ के शाम ४.३० बजे , शास्त्रीजी ने जीती हुई जमीन वापस लौटाने व शांती समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद, उनके पुत्र अनिल शास्त्री को कहा गया ..., वे देश के प्रधानमंत्री हैं, उनकी सुरक्षा के लिए उन्हें विशेष आवास में अकेले में सुरक्षित रखना होगा
प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के ताशकंद समझौते के बाद ८ घंटे के बाद , ११ जनवरी तड़के १ बजे,पाकिस्तानी रसोईये द्वारा रात को दूध पीने के बाद उनकी मौत हो गई, मौत के समय उनके कमरे मे टेलिफोन नही था, जबकि, उनके बगल के कमरे के राजनयिकों के कमरों मे टेलिफोन था, उनकी मौत की पुष्टी होने पर राजनयिकों की फौज दिल्ली मे फोन लगा कर चर्चा कर रहे थे कि अगला प्रधानमंत्री कौन होगा ?
४. अंत तक ललिता शास्त्री गुहार लगाती रही, मेरे पति की मौत की जाँच हो, आज तक सभी सरकारों द्वारा, कोइ कारवाई नही हुई?,
५. इस रहस्य को जानने के लिये, आर.टी.आई. कार्यकर्ता अनुज धर ने एडी चोटी का जोर लगाने के बाद, सरकार की तरफ से जवाब मिला कि यदि हम इस बात का खुलासा करेगें तो हमारे संबध दूसरे देशों से खराब हो जायेगें ?
६. और एक राष्ट्रवादी प्रधानमंत्री बेमौत, मौत् का शिकार हो गया., और…..? अपने परिवार के पीछे छोड गया……, सिर्फ और सिर्फ……?????, कर्ज का बोझ?.
७. देश का एक लाल, लाल बहादुर शास्त्री, जब प्रधानमंत्री बने, तब देश मे विकट परिस्थीतिया थी, देश भुखमरी के कगार मे पहुँच रहा था, सीमा पर दुशमनो की तोपें आग उगलने की तैयारी मे थी. जिन्होने “जय जवान – जय किसान” के नारे से दुश्मनों को सबक सीखाकर देश मे हरित क्रति के साथ-साथ श्वेत क्रांति की, प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की 19 महिने के प्रधानमंत्री के कार्यकाल की कामयाबी से नेहरू द्वारा किया गया भ्रष्टाचार का शौच साफ कर दिया था…., नेहरू के चमचे नेताओ की अय्याशी खत्म कर, उन्हे आम नेता बना दिया था…???
८. देश की जनता उनकी कायल थी, उनके आवाहन को जनता, सर आँखो मे रखकर , उन्हें देश का भाग्य – विधाता मानती थी,
९. उनकी साफ सुथरी छवि के कारण ही उन्हें 1964 में देश का प्रधानमन्त्री बनाया गया। उन्होंने अपने प्रथम संवाददाता सम्मेलन में कहा था कि उनकी शीर्ष प्राथमिकता खाद्यान्न मूल्यों को बढ़ने से रोकना है और वे ऐसा करने में सफल भी रहे। उनके क्रियाकलाप सैद्धान्तिक न होकर पूर्णत: व्यावहारिक और जनता की आवश्यकताओं के अनुरूप थे।
१०. निष्पक्ष रूप से यदि देखा जाये तो शास्त्रीजी का शासन काल बेहद कठिन रहा। पूँजीपति देश पर हावी होना चाहते थे और दुश्मन देश हम पर आक्रमण करने की फिराक में थे।
1965 में अचानक पाकिस्तान ने भारत पर सायं 7.30 बजे हवाई हमला कर दिया। परम्परानुसार राष्ट्रपति ने आपात बैठक बुला ली जिसमें तीनों रक्षा अंगों के प्रमुख व मन्त्रिमण्डल के सदस्य शामिल थे। संयोग से प्रधानमन्त्री उस बैठक में कुछ देर से पहुँचे। उनके आते ही विचार-विमर्श प्रारम्भ हुआ। तीनों प्रमुखों ने उनसे सारी वस्तुस्थिति समझाते हुए पूछा: "सर! क्या हुक्म है?" शास्त्रीजी ने एक वाक्य में तत्काल उत्तर दिया: "आप देश की रक्षा कीजिये और मुझे बताइये कि हमें क्या करना है?"
११. शास्त्रीजी ने इस युद्ध में नेहरू के मुकाबले राष्ट्र को उत्तम नेतृत्व प्रदान किया और जय जवान-जय किसान का नारा दिया। इससे भारत की जनता का मनोबल बढ़ा और सारा देश एकजुट हो गया। इसकी कल्पना पाकिस्तान ने कभी सपने में भी नहीं की थी।
१२. लाल बहादुर शास्त्री के आगे प्रधानमंत्री पद पर रहना, दुनिया के देशों को इतना डर नही था.., जितना इंडियन काग्रेसीयों को, वे इस डर को पचा नही पा रहे थे, उन्हे डर था कि राजनीती अब नेताओ की मजदूरी हो जायेगी, सादगी की वजह से उनकी अगली पीढी भी मजदूर बनना पसंद नही करेगी, और वंशवाद खत्म हो जायेगा. और उन्होने इंदिरा गाधी को ब्रिटेन मे भारत का उच्चायुक्त बनाने का संकेत दे दिया था.
१३. आखिरकार रूस और अमरिका की मिलीभगत से शास्त्रीजी पर जोर डाला गया। उन्हें एक सोची समझी साजिश के तहत रूस बुलवाया गया जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया, हमेशा उनके साथ जाने वाली उनकी पत्नी ललिता शास्त्री को बहला फुसलाकर इस बात के लिये मनाया गया कि वे शास्त्रीजी के साथ रूस की राजधानी ताशकन्द न जायें और वे भी मान गयीं, अपनी इस भूल का श्रीमती ललिता शास्त्री को मृत्युपर्यन्त पछतावा रहा.
१४. जब समझौता वार्ता चली तो शास्त्रीजी की एक ही जिद थी कि उन्हें बाकी सब शर्तें मंजूर हैं परन्तु जीती हुई जमीन पाकिस्तान को लौटाना हरगिज़ मंजूर नहीं. काफी जद्दोजहेद के बाद शास्त्रीजी पर अन्तर्राष्ट्रीय दबाव बनाकर ताशकन्द समझौते के दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर करा लिये गये.
उन्होंने यह कहते हुए हस्ताक्षर किये थे कि वे हस्ताक्षर जरूर कर रहे हैं पर यह जमीन कोई दूसरा प्रधान मन्त्री ही लौटायेगा, वे नहीं। पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब ख़ान के साथ युद्धविराम के समझौते पर हस्ताक्षर करने के कुछ घण्टे बाद 11 जनवरी 1966 की रात में ही उनकी मृत्यु हो गयी। यह आज तक रहस्य बना हुआ है कि क्या वाकई शास्त्रीजी की मौत हृदयाघात के कारण हुई थी? कई लोग उनकी मौत की वजह जहर को ही मानते हैं।
१५. प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के ताशकंद समझौते के बाद , रात को दूध पीने के बाद उनकी मौत हो गइ, मौत के समय उनके कमरे मे टेलिफोन नही था, जबकि, उनके बगल के कमरे के राजनयिकों के कमरों मे टेलिफोन था, उनकी मौत की पुष्टी होने पर राजनयिकों की फौज दिल्ली मे फोन लगा कर चर्चा कर रहे थे कि अगला प्रधानमंत्री कौन होगा ?
यही हाल वीर सावरकर के जीवन के साथ भी, लालबहादुर शास्त्री के मौत के सदमे के बाद,वीर सावरकर बिमार होते गये ,
उन्होने कहा “अब देश गर्त मे चला गया, अब मुझे इस देश मे जीना नही है” वीर सावरकर ने दवा लेने से इंकार कर दिया, एक बार डाक्टर ने उन्हे चाय मे दवा मिला कर दी, तो वीर सावरकर को पता चलने पर उन्होने चाय पीना भी बंद कर दिया , और एक राष्ट्र का महानायक इच्छा मृत्यु (कहे तो आत्महत्या) से चला गया.
वीर सावरकर की यह भविष्यवाणी भी सही निकली ……?????
शास्त्रीजी को उनकी सादगी, देशभक्ति और ईमानदारी के लिये आज भी पूरा भारत श्रद्धापूर्वक याद करता है
.आओ शास्त्रीजी, ताशकंद में तुम्हारी विजय पताका को ताश के महल के पत्तों की तरह ढ़हा कर, तुम्हारा काम तमाम करता हूं...
मेरे पति का शरीर जहर से नीला पड़ गया है.., इनके शव-विच्छेदन से जांच की जाए...
देशी –विदेशी
शक्तियों ने जय जवान – जय किसान के रखवाले की ह्त्या कर ,
देश की हरियाली ख़त्म कर दी...
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