यह प्रधानमंत्री को खुला ख़त नही आम आदमी पर
खुला खतरा की गुहार है... (कृपया फेस बुक या वेबस्थल की इसी कोर्ट के सन्दर्भ / बारे में की
विस्तारित पोस्ट अवश्य
पढ़ें )
कही देश के क़ानून के समक्ष देश के लिए भर्ती होने से पाहिले ही जय-जवान बूढ़े न हो जाएँ ..
आज मैं जीवन में पहली बार मुम्बई की जिला
अदालत में.., वकीलों की फ़ौज के सौदागर बार कौंसिल के उस्मानी ने मुझे गिरफ्तार
करने अनुरोध से आज ४.४५ मिनट पर पेश किया .., आरोप था कि कोर्ट के परिसर में विडिओ
निकालने का....
क़ानून के काले कव्वों ने उस्मानी के उस क़ानून के सुनहरे आसमान को
देखकर.., एक सुर में कव्वाली करते हुए कहा .., यह व्यक्ती हमारी खाने पीने की वस्तु में
सेंध लगानें का आरोप में, REMAND में लेने
की कर रहा था DEMAND..,
जी हाँ कुर्ला कोर्ट के बार काउन्सिल के मुखिया
वकील उस्मानी के कुल्ला करते हुए वक्त उसके दाँतों की चमक को मैंने
VIDEOGRALHY करते हुए उनसे पूछा की कि स्टाम्प पेपर लेने पर २ घंटे बाद भी कतार
क्यों नहीं हिलती है... लोगों को बिना टिकेट का बैरंग लिफाफा का दंड (समय की हानि)
लेकर अपने जीवन को काटता ही रहता
इस वीडियोग्राफी के बाद वह कोर्ट के कमारा
नंबर ६६१ के पास जाने का बहाना बनाकर मुझे कोर्ट रूप के अन्दर पुलिस कर्मियों को
इशारा कर कहने लगा.., इसने कोर्ट की VIDEOGRALHY की है इसे जेल में डालो...
मैं पुलिस की निगरानी में कोर्ट में था ..,
पुलिस ने मोबाइल की विडियो DELETE का आदेश दिया .., एक घंटे बाद चल रही सुनवाई के बाद मेरा नंबर
आया ..
उस्मानी मजिस्ट्रेट से बहस कर रहें थे इसे
गिरफ्तार करो.., दलील ख़त्म मैं निहत्था विना वकील से था .., मजिस्ट्रेट ने मझ से पूछा “तुम कौन हो.” तब मैंने कहा “साधारण आदमी” “जब
एक वकील मुझे हिरासत में रखने की ताकत रखता है.., यदि आप सहमत हो तो आप मुझे जेल
में डाल सकते हो.., मैं जेल जाने में कोई आपत्ती नहीं है.., “ “लेकिन मैं इतना ही
कहना चाहता हूँ की इस देश में जन्म लेने का मैं ही दोषी हूँ..”
इस पर मजिस्ट्रेट आग बबूला हो गया और कहने
लगा हमारी कानूनशाही विश्व में महान है.., आपको मोबाइल विडियो डिलीट DELETE करने
के बाद एक मौक़ा और दे रहा हूँ और पुलिस कर्मियों को आदेश दिया कि इस शख्स पर
निगरानी राखी जाए.., तब मैंने मजिस्ट्रेट से कहा आप मेरा मोबाइल नंबर . लें और
इसकी कॉल रिकॉर्डिंग देश की सुरक्षा
अधिकारीयों अधिकारियों को निगरानी का आदेश दें
मेरे समर्थन में इस कतार में खड़े ३ लोग
गवाह बने.., उनमें से एक तो लघु संखा के बहाने कोर्ट से गायब हो गया .., दूसरा एक
१८ वर्षीय के आसपास के उम्र का युवक कुछ कहता एक तीसरा युवक जो ३० की उम्र का होगा
बड़ी जाबांजी से इस दुखड़े की तस्वीर बयाँ कर कहा कि क्या लोग अपनी जिन्दगी की कतार
इसी चक्कर में गवां रहें हैं..
जब मजिस्ट्रेट के आदेश व उक्ति का बयान
सुनकर मैं हक्का बक्का रहा गया कि वह भी इस हुक्का पानी का भागीदार है..., यह बयान
इस युवक के प्रतिउत्तर में था ...
यदि आप रेल के आरक्षित डब्बे में यात्रा
करते है .., आगे कोई यात्री स्टेशन में आपसे दरवाजा खोलने के लिए कहता है तो आप
दरवाजा खोलकर अपना आरक्षण का अधिकार उसे दे सकते हैं..., उसी प्रकार से
STAMP PAPER खरीदने का वकीलों का पहिला अधिकार है..., अभिप्राय यही है..., क़ानून
के सामने जनता को सिर्फ जूता खाने का आधार है .
June 28 • 2016 की इस पुराने संघर्ष की
पोस्ट
प्रधानमंत्री को खुला पत्र –
देश के अशोक स्तम्भ के शेरों को लूला लंगडा बनाकर, एक क़ानून का वकील/नोटरी नोट की गठरी बनकर भेडिया की आवाज में मुझे रोजगार
देने की धमकी दे रहा है .
मेरे देश में ऐसे लाखों लोग है जो ऐसे ही
घटनाओं को देश के दर्द का मर्ज दूर करने के बजाय इसे अपना दर्द बनाकर पसीज कर तीखा
घुट पी जातें हैं. बजाय क़ानून तंत्र के तांत्रिकों से लड़ने के ..,क्योंकि इनमें इतनी ताकत है क़ानून की तांत्रिक विद्या से जनता कब “बलि का बकरा” बन जाये .
आज की ताजा घटना व १७ जून का दम घुटने का
संस्मरण. व घुटने न टेकने का संकल्प :
आज संध्या के चार बजे मुंबई की भारी बरसात
में सड़को की छोटी – छोटी छूती नदियों को
चीरते मुम्बई, मैं कुर्ला के अपराधिक कोर्ट में १०० रूपये के
गुणाकों के ५००रूपये को कानूनी रूप देने के लिए “नोटरी V.K.SINGH”
से मिला. स्टाम्प पेपर पर ठप्पा मारने के बाद मैंने पूंछा कितने
पैसे लगेंगे.., जब उसने कहा ५०० रूपये तो मैंने दंग होकर कहा
“इसके पहिले भी मैं यहां आया हूँ आपके बगल मे बैठा नोटरी ८० रूपये
लेता वह व्यस्त है इसलिए मैंने आपको पेपर दिया .., “ फिर
उसने मुझसे पूछा तुम क्या करते हो.., मैंने कहा, बेरोजगार हूँ.., और ठप्पा मारने के बाद १०० रूपये का
नोट मेज पर रखे तो V.K.SINGH ने सही करने से मना कर धमकी दी
कि इस स्टाम्प पेपर का नोटरी कैंसल करता हूँ .., तब मैंने भी
उसे चुनौती दे डाली कैंसिल करो..,
तब उसने वह पेपर गीली जमीन में फेक कर
धमकी दी “अब ज्यादा कुछ बोला तो तुम्हें रोजगार दिलाऊंगा.., तन
मैंने भी भारी आवाज में चुनौती दी व नोटरी कक्ष के अन्य लोगों ने मामला शांत कराने
के बाद मैंने बगल के नोटरी से कहा आप इसे ८० रूपये में कर दो.., तब जवाब में उसने कहा तुम पहिले मेरे पास आते तो यह काम मैं कर देता ,
अब मैं भी इसके ५००रूपये लूंगा...
तब खिन्नता से इसकी चर्चा मैं “बार रूम” में बैठी वकीलों की फ़ौज से की सभी ने कहा “हमारे बार कौंसिल के मुखिया उस्मानी से मिलकर शिकायत करों..,” मुखिया ने मेरी शिकायत सुनकर कहा मैं कुछ नहीं कर सकता यह उनका नीजी
अधिकार है ..,
मैंने कहा मैं हाईकोर्ट में याचिका दायर
करूंगा तब उन्होंने कहा, तुम्हे वकील रखना पडेगा
.., मैंने कहा, मैं आम नागरिक की
हैसियत से स्वंय लडूंगा .., तब उनका जवाब सुनकर मैं दंग रह
गया कि “संविधान को हाथ में लोगो तो जेल में सड़ जाओगे.”
अब सवाल यह है कि “इसके काले कोट से , जनता की जेब साफ़ कर, धुलाई का कितना धन जमा है..!!!. क्या काले कोट की जेबें और भी लंबी होते
जायेंगी “
२. दूसरी घटना- १७ जून को मुम्बई,
कुर्ला के ही अपराधिक कोर्ट में ५०० रूपये के स्टाम्प पेपर लेने गया
.., १० लोगों की भीड़ में मुझे स्टाम्प पेपर लेने में ३ घंटे
लग गए.., हाल यह था कि खिड़की के बाहर खड़े लोगों को छोड़कर,
स्टाम्प पेपर के कमरे में वकीलों की फ़ौज के एक –एक वकील दस से अधिक पेपर लेकर “क़ानून के अन्दर की
बात” से कतार में खड़े, खिड़की के बाहर
लोगों को परेशान कर रहे थे,
अंतिम स्थान में खड़े रहने पर मैंने खिड़की
पर जाकर कहा कि “बाहर खड़े लोगों के समय की
कीमत नहीं है, क्या.., 1 घंटे से कतार
नहीं हिल रही है..,” तब उस क्लर्क ने जवाब दिया कि यहां ,कोर्ट के वकीलों को स्टाम्प पेपर देने का पहिला अधिकार है .., तब मैंने प्रतियूत्तर में जवाब दिया कि आप वकीलों के बार रूम में एक नया
विक्रय फलक क्यों नहीं खोलते हो.., तब उस क्लर्क ने कहा यह
बात, आप कोर्ट में जाकर कहो.., तब
मैंने गुस्से में आकर कहा, आप वापस कहें “मैं तुम्हारी विडियो रिकार्डिंग करता हूँ.., “तब
उसने मुस्कराते हुए निर्लज्जता से कहा.., करो.., करों .., मीडिया में मैं भी प्रसिद्धी पा लूंगा .. ,
कमरे के सभी वकील,
मुझसे दो-दो हाथ करने के मूड में अपनी कमर में हाथ रखकर, मुझे घुर-घुर कर देख रहें थे .., इसका फल इतना जरूर
निकला, चुप भीड़ बुदबुदाते मुझे सराह रही थी कि अब उस क्लर्क
ने खिड़की के बाहर एक व्यक्ती व एक वकील को स्टाम्प पेपर देकर..., मैं तो भीड़ से निपट गया. लेकिन मेरे पीछे लगी अपार भीड़ को देख कर मन ही मन
सोचता रहा यह भारत नहीं जनता के लिए भार – रत देश है...,
जीने से मरने तक कतार, जीवन के एक समय का
प्रमुख अंग है
“UNSIGNED” नोटरी के “नोट की गठरी” का खेल..
“UNSUNG STORY OF JURIDIC”
दोस्तों आवाज उठाओं..,
देश भ्रष्टाचार के दस्त से बीमार है.., देश तो
इस दंश के काले नाग.. , देश के जातिवाद, भाषावाद, धर्मवाद, अलगाववाद के
वोट बैंक से जकड़ी, बिखरी जनता को बिफर विफर कर..., चुन-चुन कर मारेगी.., अकेला मैं क्या कर सकता हूँ ..,
देश के लिए यह भावना निकाल दो...
PMO व मोदीजी को इस सन्देश को भेजकर ,
जवाब का इन्तजार है...,
No comments:
Post a Comment