बोलू: २९ मार्च तो चला गया हैं .., आज ..,अब तू क्या
देख रहा है..
देखू: आज भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम १८५७ के क्रातिकारी दिवस के शिल्पकार अग्रदूत के जन्मदिन की १६० वीं सालगिरह है और उनकी कोई जिहर नहीं , देश में मुर्दानगी व सदमा का माहौल है. मंगल पांडे फिल्म से करोड़ों रूपये कमाने वाले आमीर खान का असहिष्णुता का सदमा अब भी दूर नहीं हुआ है ..,
बोलू: हाँ क्रिकेट के वर्ल्ड कप के स्पर्धा से व २०-२० के मैच से इंडिया के बाहर हो जाने से मीडिया भी TRP की नुकसान से सदमा में है.., और राष्ट्र के गौरवशाली इतिहास को जानने में देश में मुर्दानगी छाई है.
सुनू : हाँ एक खबर मैं भी सुन रहा हूं ..., एक नौटंकीवाल की जो जिसे पहले दमा की खांसी से लोकसभा चुनाव हारने पर सदमा लगा था, बाद में “ व्यस्था परिवर्तन के खांसी के नारे से “ भारी बहुमत प्राप्त कर अपने खांसी के इलाज का दावा कर, अब अपने वरिष्ठ गुरूओं को लात मार कर .., आज गुरू पूर्णिमा के दिन दमा के फार्मूले से दम लगाकर, पंजाब में अपने “घोषणा” पत्र को “गुरू ग्रन्थ साहब” कहकर अपने पार्टी के कार्यकताओं से अंगों की दबान जुबाकर उनकों सदमा लगा दिया है..., अब स्वर्ण मंदिर में धुले हुए बर्तन धोकर अपने “स्वर्णिम दिनोँ” का ख़्वाब दिखाकर अपने रूतबे से हर मुद्दे पर मोदी को धाक दे रहा है.
देखू: हाँ में देख रहा था , २ वर्ष पहिले, २३ मार्च को भगत सिंग व साथियों के ..., 30 सालों बाद “तीन देश रत्नों” के बलिदान दिवस को प्रधानमंत्री से सभी पार्टियों के छुटभैये नेता श्रेय ले रहे थे..., जैसे हममें ही.. सरदार भगत सिंग का ही खून दौड़ रहा है...
बोलू : आज का दिन तो TRP वाला मीडिया भी भूल चुका है.., सोशल मीडिया को भी इसकी भनक नहीं लगी है.
देखू: वर्ष 2005 में आमिर खान ने देश के 1857 का पहले स्वतंत्रता संग्राम और इसके नायक बनकर मंगल पांडे पर फिल्म बनाई.., नई पीढी ने मल्टीप्लेक्स में २०० रूपये के टिकट खरीदकर कहा, आमीर खान ने मंगल पांडे की क्या शानदार एक्टिंग की है, युवा पीढी ने मंगल पांडे के आदर्शो से ज्यादा आमीर खान तारीफ से उन्हें अरब पति बन दिया .., जबकि आज भी , मंगल पांडे के वंशज की परिस्थिती व घर जर्जर अवस्था में है.
बोलू: हां , २ साल बाद ही मंगल पांडे की १५० वीं पुण्य तिथी थी , देश वासियों को तो छोड़ों , आमीर खान ने भी ये जयन्ती कूड़ेदान में डाल दी.. , कोई प्रतिक्रया नहीं हुई ,
बोलू: यह तो देशवासियों को, वीर सावरकर का अहसान मानना चाहिए .., जिन्होंने प्रमाण सहित सिद्ध किया कि १८५७ का यह एक स्वातंत्रय समर था, जिनकी प्रेरणा से सरदार भगत सिंग,आजाद, सुभाषचन्द्र बोस जैसे लाखों क्रांतीकारियों को जन्म दिया.
देखू : मैं साफ़-साफ़ देख रहा हूँ कि इसमे राजनीती के वोट बैंक है, सभी पार्टियों को गौ-ह्त्या प्रतिबन्ध से देश को विदेशी मुद्रा की आवक के साथ..., पार्टीयों को अपने, वोट बैंक का आधार कमजोर होने का डर लग रहा है , क्योंकी १८५७ की भारयीय आजादी के प्रथम बगुल का कारण था ''गाय'' !!
बोलू: १८५७ में जब प्रथम बार भारत की आजादी के लिए बागी बलिया के
अमर शहीद मंगल पाण्डेय बगुल फुकी थी ! उसका एक मात्र कारण था ...कारतूस में ''गाय'' की चर्बी !
जब इस महानायक को पता चला तो इस बात को लेकर 29 मार्च 1857 को मंगल पाण्डेय ने परेड ग्राउंड में ही
अपने साथियों को विद्रोह के लिए ललकारा ! और अंग्रेज सार्जेंट मेजर ह्यूसन को गोली
मारकर ढेर कर दिया ! इसके बाद सामने आए लेफ्टिनेंट बॉब को भी मंगल पाण्डेय ने गोली
से उड़ा दिया ! इस दौरान जब मंगल पाण्डेय अपनी बंदूक में कारतूस भर रहे थे,
तो एक अंग्रेज अफसर ने उन पर गोली चलाई ! निशाना चूकने पर मंगल ने
उसे भी तलवार से मौत के घाट उतार दिया !
इसके बाद अंग्रेज अफसर कर्नल वीलर ने उन्हें गिरफ्तार करने का आदेश दिया, लेकिन कोई सैनिक आगे नहीं आया ! अंत में कर्नल हिअर्सी के दबाव में मंगल पाण्डेय ने खुद को गोली मार ली ! घायल मंगल को अस्पताल भेजा गया ! इसके बाद उनका कोर्ट मार्शल हुआ और फांसी की सजा मुकर्रर की गई ! आठ अप्रैल 1857 को मंगल पाण्डेय को फांसी दे दी गई !
इसके बाद अंग्रेज अफसर कर्नल वीलर ने उन्हें गिरफ्तार करने का आदेश दिया, लेकिन कोई सैनिक आगे नहीं आया ! अंत में कर्नल हिअर्सी के दबाव में मंगल पाण्डेय ने खुद को गोली मार ली ! घायल मंगल को अस्पताल भेजा गया ! इसके बाद उनका कोर्ट मार्शल हुआ और फांसी की सजा मुकर्रर की गई ! आठ अप्रैल 1857 को मंगल पाण्डेय को फांसी दे दी गई !
देखू : आज ''गाय'' और इस महानायक के वंशज दोनों को स्तिथि बहुत ही दयनीय हैं ! जो गाय भारतीय आजादी की नीव बनी ! जिसके कारण आजादी की लड़ाई की बिगुल फुकी गयी ! आज उसी ''गाय'' की रक्षा करने वाला कोई नहीं हैं !
देखू: यह कैसा देश हैं ? कैसी हैं यहाँ की कानून व्यवस्था ? कैसे हैं यहाँ के लोग ?
हमें आजादी की लड़ाई की बुनियाद बनी ''गौ' माता की हत्या पर पूरे भारत वर्ष में रोक ..और इस महानायक के जन्म दिन को राष्ट्रीय क्रन्तिकारी दिवस घोषित करने की मांग को लेकर ..अपने अपने स्थानीय क्षेत्रो में कमेटी बनाकर ..जन चेतना के जरिए जन आंदोलन करने की जरूरत हैं, साथ में ...अदालत में इस मांग की लेकर याचिका दायर करने की जरूरत हैं !
देखू: हाँ इस स्वतंत्रता संग्राम में तो ‘वन्देमातरम ‘ की लय से हिंदु –मुस्लिम एकता से अंग्रेजों का साम्राज्य थर्रा गया था.., उनका एक ही लक्ष्य था .., अन्रेजों का साम्राज्य उखड फेंकना
बोलू: मैं इन कुछ क्रांतीकारियों के नाम जनता को बताता हूँ ... नाना साहब पेशवा 2. तात्या टोपे 3. बाबु कुंवर सिंह 4. बहादुर शाह जफ़र
5. मंगल पाण्डेय 6. मौंलवी अहमद शाह 7. अजीमुल्ला खाँ 8. फ़कीरचंद जैन 9. लाला हुकुमचंद जैन 10. अमरचंद बांठिया 11. झवेर भाई पटेल 12. जोधा माणेक 13. बापू माणेक 14. भोजा माणेक 15. रेवा माणेक 16. रणमल माणेक 17. दीपा माणेक 18. सैयद अली 19. ठाकुर सूरजमल 20. गरबड़दास 21. मगनदास वाणिया 22. जेठा माधव 23. बापूगायकवाड़ 24. निहालचंद जवेरी25. तोरदान खान26. उदमीराम27. ठाकुर किशोर सिंह, रघुनाथ राव28. तिलका माँझी 29. देवी सिंह, सरजू प्रसाद सिंह
30. नरपति सिंह 31. वीर नारायण सिंह 32. नाहर सिंह 33. सआदत खाँ 34. सुरेन्द्र साय35. जगत सेठ राम जी दास गुड वाला36. ठाकुर रणमतसिंह 37. रंगो बापू जी 38. भास्कर राव बाबा साहब नरगंुदकर 39. वासुदेव बलवंत फड़कें 40. मौलवी अहमदुल्ला
41. लाल जयदयाल 42. ठाकुर कुशाल सिंह 43. लाला मटोलचन्द44. रिचर्ड विलियम्स 45. पीर अली 46. वलीदाद खाँ 47. वारिस अली 48. अमर सिंह 49. बंसुरिया बाबा 50. गौड़ राजा शंकर शाह 51. जौधारा सिंह 52. राणा बेनी माधोसिंह 53. राजस्थान के क्रांतिकारी 54. वृन्दावन तिवारी 55 महाराणा बख्तावर सिंह 56 ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव
सुनू : मैं , तो जनता का छुपा दर्द सुन रहा हूँ..,
देखू : मैं तो देख रहा हूं , जैसे ईस्ट इंडिया कंपनी , भारतवर्ष में व्यापार करने के बहाने , धन बल, साम-दाम- दंड –भेद , जातिवाद, धर्मवाद, अलगाववाद से देश को अपने प्रभुत्व से २०० सालों तक गुलाम रखा ...वैसे ही विदेशी कंपनियों ने 70 सालों से आज तक , अपनी नीती से, देशी माफिया, नेताओं से देश में राज कर, देश को कर्ज से गर्त में डाल दिया है
देखू : यह सब देख कर मेरे रोंगटे खड़े हो रहे है..., यह हमारा वार्तालाप सुनकर मैं आशा करता हूँ कि देशवासियों के राग में एक नए खून का संचार होगा
२९ मार्च १८५७ हुई कल की बात.., १९४७ के बाद के पुतले बने वोट बैंक से की सौगात से, सत्ता की बारात से..., देश में आज भी छाई है..विदेशी हाथ,साथ,विचार संस्कार के छतरी से काली रात..
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