Tuesday, 14 June 2016

अच्छे दिनों का शतक ..,जनता सकते में ..., महंगाई की पिच पर सरकार के नो बाल (कोई करवाई ने करने से) माफियाओं का टमाटर २० रूपये से १०० रूपये का ताबडतोब शतक..., माफियाओं के गाल हो गए है लाल.., अब माफिया, जनता के पसीने के तालब में मेढक बनकर, बुलंद आवाज से कर रहें हैं .., टर्र – टर्र ...



मुझे गर्व होगा 100 रूपया किलो टमाटर खाने मे .. यदि किसानो को इसमे 80 रूपये मिले.

अच्छे दिनों का शतक ..,जनता सकते में ..., महंगाई की पिच पर सरकार के नो बाल (कोई करवाई ने करने से) माफियाओं का टमाटर २० रूपये से १०० रूपये का ताबडतोब शतक..., माफियाओं के गाल हो गए है लाल.., अब माफिया, जनता के पसीने के तालब में  मेढक बनकर, बुलंद आवाज से कर रहें हैं .., टर्र – टर्र ...  

दाल से माफिया खा गए किसानों का माल.., बनें देश के लाल.., गाल हो गए है लाल .., देशवासी बदहाल..,  

१. किसान कैसा इंसान, हैवान.., शोषण का विधान , कहते हैं ८४ लाख योनी के बाद मानव जन्म मिलता है.., देश का कलंक है कि इस देश में धरती पुत्र व देश के अन्नदाता के रूप में जन्म लेने वाला सत्ता परिवर्तन से आजादी का झांसा देकर .., ७० सालों से किसान आत्महत्या कर रहा है .

२. कोल्ड स्टोरेज न होने से किसान का जीवन ठंडा.., हर फसल उसके जीवन में दंड के डंडे से घायल है..., माफिया कोल्ड स्टोरेज से एक नई ज्वाला से देशवासियों के जीवन को जला रहा है ...

३. राज्य व केंद्र सरकारों का एक दुसरे पर आरोप प्रत्यारोप से माफिया किसानों के हर फसल से भ्रष्टाचार से प्रत्यारोप से जीं में बहार,,, अब तो करे ललकार..., रोक सके तो रोको... 

४. प्रधानमंत्री मोदी ने भी सही कहा है कि इस देश में जन्म लेने वाला .., गरीबी के पश्चाताप को श्राप मानकर अपनी जिन्दगी गुजार देता है..,

५. देश की भयावह स्तिथी , अभी UNO की रिपोर्ट आयी है..., ताजा आंकड़ों से आज भी मेरा देश, इसमें नंबर १ से शीर्ष तालिका में है , यह राष्ट्र का कलंक है कि १९४७ में सत्ता परिवर्तन के समय.., हमारे देश को कृषी प्रधान देश कहा जाता था.., 90% लोग कृषी छेत्र से जुड़े थे .., देश की अर्थ व्यवस्था में ६६% हिस्सा कृषी व्यवसाय से था ...

६. देश के आराम से हरामी बनकर, विदेशी भाषा हाथ, साथ विचार के अय्याशों ने किसानों का हल छीनकर, पशुओं के क़त्ल खाने खोलकर..., पशुधन के काटकर विदेशी मुद्रा कमाने का खेल से किसानों के हाथ काटकर, अमेरिका से सूअरों के न खाने वाले गेंहू को देशवासियों को खिलाते रहे.. पंजाब के किसानों की विशाल शक्ती से अब गेहूं की vishal विशाल पैदावार के बावजूद.., उचित मूल्य न मिलने पर.., अब लाचार...

७. १९४७ में देश 30 करोड़ की आबादी में 120 करोड़ का पशुधन था .., देशवासी ताजे दूध की नदियों से ऋष्ट पुष्ट था ...एक नए आजादी के भ्रम से राष्ट्रवादी जज्बे से एक नए सवेरे का इन्तजार कर रहा था , लेकिन राजनीती से जनता को अशिक्षित रख .., चुनावी अफीमी नारों से सुलाते रहे...
दोस्तों.., डूबते देश की कहानी है.., मेरा देश सो रहा है,,, गरीब भूख से रो रहा है.., 

वेबस्थल व फेस बुक की २०१३ की .. की मुन्ना मोहन की कांग्रेस सरकार के दरम्यान कि पुरानी पोस्ट 


जरूर पढ़ें.., मुझे गर्व होगा 100 रूपया किलो टमाटर खाने मे .. यदि किसानो को इसमे 80 रूपये मिले... किसान रूपये मे कमाता है.. बिचौलिया... बीच का तैलिया (माफिया) उसे डाँलर मे बेचता है... किसान धरती का पूजक , प्रकृति का संरक्षक, मिट्टी से फसल की भनक व वतन की खुशबू, देशवासियों को निवाला खिलाने वाला,,देश का अन्नदाता किसान भगवान् है..., जब, हम दिन मे तीन बार भोजन ग्रहण करते है...तब हमे किसानो की याद नही आती है.... जब देश का भगवान मेहननत करने के बावजूद आत्महत्या करता है..(याद रहे.. 1947 से आज तक 20 लाख से कही बहुत ज्यादा.. किसानो की हत्या व उन्हे विकास के नाम से जमीन छीन ली गई ह...) देशवासीयों मे कोई प्रतिक्रिया नही होती है..

देश के बीच के तौलियों द्वारा अकाल में उनके भूखे जानवरों, व परियोजनाओं के नाम से कौड़ी के दाम में खरीदकर.., उनसे भारी भरकम मुनाफे के खेल में, आज २००० किसान परिवार, प्रतिदिन अपना पैतृक कृषी का व्यवसाय छोड़ना पड़ रहा है..., किसान बनने के लिए.., कई पुश्ते चले जाती है, इस देश के क़ानून की बिंडवना है कि कोई माफिया यदि वह १ करोड़ की कृषी भूमी खरीदता है तो उसे किसान का दर्जा मिलता है.., वह आज के भ्रष्टाचार के माहौल से, विभिन्न योजनाओं से ऋण लेकर, बैंक व देश को चुना लगा रहा है... 

आज जनता भी ६७ सालों से किसानों का दर्द न समझने से, खुद छुपे रूप से दर्द से पीड़ित , ऊँचे भाव में किसानों का उत्पाद खरीद कर माफिया भी मूंछों पर ताव दे रहें हैं...

इलाज:::::

इन माफियाओं का बीच का तौलिया जनता जरूर खोल सकती है..आज मोहल्ले के हर घर में औसतन एक युवक बेरोजगार बैठा है.., यदि मुहल्ला प्रण कर ले कि हम किसानों को पैतृक कृषी का व्यवसाय छोड़ने व आत्महत्या करने की मजबूरी से प्राण देनें की मजबूरी के निवारण का संकल्प ले.., तो देश की जनता के साथ किसान भी सुखी रहेगा, आज जनता में यदि राष्ट्रवादी धारा से, किसानों के फसल को, देश के मुहल्लों व शहर की जरूरत से फसल एकमुश्त खरीद ले.., व अधिकतम खरीद के लिए मुहल्ले के लोग ५०० रूपये प्रति परिवार के संग्रह से खुले मैदान में ताड़पत्री व बॉस के बम्बू से खाद्यान के भण्डार का जुगाड़ आसानी से होने के साथ घर बैठे बेरोजगार युवकों को आसानी से १० हजार रूपये की आमदनी के साथ देश का मोहल्ला से किसान सुखी रहेगा, सब्जियों को तो घर के मोहल्ले एक दुसरे को सहयोग करे, तो फ्रीज में रख कर, जो माफिया कोल्ड स्टोरेज में रखने का बहाना बनाकर व कृत्रीम तेजी का इन्तजार कर, जनता को लूटने का ख्वाब ख़त्म हो जाएगा 

याद रहें.., पिछले कार्यकाल मे अमेरिका के राष्ट्रपति जाँर्ज बुश ने देश के माफियाओ का समर्थन करते हुए कहा था.. इंडियन लोग ज्यादा खाते है.. इसलिए दुनिया मे खाद्यान के भाव बढ रहे है... जबकि हमारे देश मे 70% जनता तो,भुखमरी की शिकार है..वह देशी शराब सस्ती होने से अपने व बच्चो को भी शराब पिलाकर सुला देती है.. आज हमारी क्षमता है , किसानो व जवान (सेना) का सम्मान किया जाय तो....?????????????, हिन्दुस्थान का किसान पूरी दुनिया को खिला सकता है..व जवान के सामने पुरी दुनिया झुक जायेगी... 

अभी मै आपको एक साल पहिले की घटना का उल्लेख करना चाहता हूँ.. पुणे (महाराष्ट्र) से दूर 250 कि.मी. दूर नारायण गाँव मे टमाटर का भाव माफियाओ ने 40 पैसे किलो लगाई तो... किसानो ने मीडिया को बुलाकर.. वह टमाटर सडको पर फेंक दिये...क्योकि सब्जी मंडी मे टमाटर पहुचाने का खर्च 80 पैसे से कही ज्यादा आता था... जबकि वही टमाटर... पुणे की मंडी मे 6 रूपये किलो व मुंबई मे 12 रूपये किलो बिक रहा था.. अभी हाल ही मे नारायण गाँव व दूसरी घटना मध्यप्रदेश मे घटी... धनिया की एक मुठ की किमत 10 पैसे .. जबकि वही धनिया की एक मुठ.. मुँबई मे 10 रूपये प्रति मुठ बिक रही थी..

आज माफिया, मीडिया वर्ग से तालमेल से कह रहे है.. मंडी मे सब्जी की आवक कम होने से भाव बढे है...,यह संदेश जनता को संदेह पैदा कर, उसे भांती से मजबूरन खरीदना पड़ता है..., यह माफियाओ का अर्थशास्त्र है...जो हमारे पुराने प्रधानमंत्री व्यर्थे/अनर्थेशास्त्री प्रधानमंत्री का भी है.. जो बार बार कहते है कि विकास करना है तो जनता को भी इसका भार महगाँई के रूप मे उठाना पडेगा...

मेरे प्रियतम दोस्तो अब तो जागो... देश तो डूब रहा है... लेकिन इतनी गहराई तक न डूबे की जनता को भी डूबते देश को उपर खीचने की भी ताकत न रहे.. 

मुझे घर बैठे लाईक नही... मुहल्ले मे हाथ खडा कर समर्थन मे शेयर नही.. देश के शेरो मे अपना खून डालकर एक नयी दहाड के रूप मे प्रतिक्रिया (काँमेंट्स) चाहिए... इस खेल वालो का तेल कैसे निकाले..इसका जज्बे से संकल्प ले... , 24 घंटे मे जो माफियाओ की खुमारी (नशा/मस्ती)...जो जनता को महँगाई की बिमारी लगाकर वह हताश हो गया है.. इसकी गोली, हमारी राष्ट्रवाद की बोली ही.. इनकी (माफियाओ की) झोली खाली कर सकती है... 

दाल से माफिया खा गए किसानों का माल.., बनें देश के लाल.., गाल हो गए है लाल .., देशवासी बदहाल..,  

१. किसान कैसा इंसान, हैवान.., शोषण का विधान , कहते हैं ८४ लाख योनी के बाद मानव जन्म मिलता है.., देश का कलंक है कि इस देश में धरती पुत्र व देश के अन्नदाता के रूप में जन्म लेने वाला सत्ता परिवर्तन से आजादी का झांसा देकर .., ७० सालों से किसान आत्महत्या कर रहा है .


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