देश
तो वहां डूबा, जहां पानी नहीं था ..,
देश तो वहां डूबा, जहां पानी नहीं था .., बालवाड़ी के छोटे बच्चों को कविता पढ़ाई जाती है .., मछली जल की रानी है , जीवन उसका पानी है , हाथ लगाओ डर जाती है , बाहर निकालो मर जाती है..
चाणक्य की हजारों उक्तियां १००० सालों बाद भी सार्थक है ...
“राजनेता.....
एक मछली की तरह है” , तालाब से समुन्द्र तक की मछली मुंह तो हिलाती है, लेकिन वह कितना पानी पीती है, किसी को पता नहीं चलता है”
आज
की.., सत्ताखोर से नौकरशाही बड़ी मछ्ली से,
जल (संसाधनों) के राजा / रानी है.., जीवन में
भ्रष्टाचार से देश का पानी पीने का अधिकार से, देश में गरीबी व भुखमरी का अन्धकार है
, उन्हें हाथ लागाओ तो जनता के हाथ खा जाते हैं , बाहर निकालों तो पुलिस से जज भी
डर से भाग जाते हैं कि कहीं हमारी रोजी रोटी का अधिकार जीवन से न छीन लें.
देश
७० सालों से कर्ज के गर्त में डूबा है..,
हम मूलधन चुकाने के बजाय ,इस धन के ब्याज को चुकाने के लिए विदेशी निवेशकों को बुलाकर कर्ज का पहाड़ बना
रहें हैं ..
देश
का पानी सूख चुका है.., १९४७ में देश का १ रूपया = १ डॉलर से विदेशी देशों को कड़ी
टक्कर देकर, देश का सम्मान था ...,
आज
तक इन सत्ताखोरों ने मछली के रूप से बहुरूपिया बनकर .., बहुत रूपया.., देशी बैंकों
को चूना लगाकर , विदेशी से देशी बैंकों व
देश में भी अकूत संपत्ति के मालिक बन
बैठें हैं..,
देश
की राख तले की चिंगारी की प्रतिभा को में सत्ताखोर, आरक्षण, जातिवाद, भाषावाद ,
अलगाव वाद का पानी डाल कर..., झूठी
योजनाओं से अपने पिए हुए पानी के बुलबुले से , आराम हराम है, गरीबी हटाओ , मेरा भारत महान से इण्डिया
शाइनिंग , भारत निर्माण से अच्छे दिनों के
अफीमी नारों से , अब मीडिया – माफिया – राजनेताओं के गठबंधन से देशद्रोहियों की एक
नई फ़ौज बनकर देश को कीचड़ से लीचड़ बनाकर .., देश गर्त में जा रहा है...
दुश्मन
देश भी कंधे से कंधा मिलाकर.., देश के भीतरीघात
से लोकतंत्र से लूटतंत्र के खेल से प्रसन्न हैं .., वे मान रहें है कि हमारा देश
भीतरीघात से अपने आप कमजोर हो जाए ताकि आक्रमण करने में आसानी हो ..
दोस्तों
लिखने को तो बहुत-बहुत है.., यदि काले धन को राष्टीय सम्पत्ती बनाने का क़ानून व
विशेष राष्टीय सुरक्षा क़ानून (रासुका) व विशेष त्तीव्र गति के बुलेट ट्रेन जैसे अदालत नहीं बनेंगें .., जनता इन काले धने के
मसीहाओं के बुलेट से घायल होकर उनके आंसू बहते रहेंगे..,
आज
देश कि बिंडवना.., व सच्चाई यह है कि ७०
सालों में गरीबों के बहने वालों आंसुओं की ताकत, देश की नदियों के पानी से भी ज्यादा
है..,
“रासुका”
से ही गरीबों के और आंसू नहीं बहेंगें .., कौन बनेगा करोडपति के उद्घोष से .., विदेशों
में करोड़ों का धन जमा करने वालों को भी वही दंड मिलेगा जो एक सामान्य अपराधी व
पाकेटमार के अनुपात में मिलता है..,
“रासुका”
के बिना गरीबों के आसूं का कोई मोल नहीं होगा ..,और “अच्छे दिनों” का नारा भी ७०
वर्षो के इतिहास का अफीमी नारों का आयाम बनकर.., मीडिया-माफिया- नौकरशाही –
जजशाही- सत्ताशाही के शाही सम्पन्नता का जो देश की आबादी के ०.५ % से भी कम लोगों की
वैभवता से देश को गर्त में डालने का खेल बदस्तूर जरी जारी रहकर.., देश की तस्वीर और
बदसूरत होते रहेगी.
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