“महिला दिवस” या महल में रहने वालों द्वारा “एक
दिवस” से महिलाओं का गुणगान.., बखान.., या महिला को अबला कहने वाले इस दिन महिलाओं
के नाम पर तबला से ढोल पीटने का खेल है ...
इस महिला दिवस के पूर्व सुप्रीम कोर्ट की
महाराष्ट्र सरकार को फटकार.., हमारी शर्तों पर खोलो महाराष्ट्र में डांस बार.., नृत्य
के नृत्य कर्म से पुरूषों को बहलाने की आड़ से देश को नारी व्यापार के नाम पर डांस
बार के “आहार” नाम के यूनियन द्वारा नारी के
देह को आहार के नाम से पिछले बार ७५ हजार महिलाऐं मुक्त होकर १० वर्षों में स्वरोजगार से स्वलाभित होकर स्वलामबित हो गई ,
याद रहें महिलाओं को हुस्न का मोहरा बनाकर लाखों युवाओं के घर –बार को उजाड़ दिया था ..,
८ मार्च २०१५ की फेस बुक व वेब स्थल की पोस्ट महिला
दिवस - देश की दो तस्वीरों से, हिला देश ,
१. पहली.., भांड
मीडिया ने जेल में बलात्कारी को जज बनाकर उसके बयान को प्रस्तुती स्वरुप बनाकर, निर्भयता
के TRP से मालामाल.., पहले तो
हमारे देश को नागों की पूजा व दूध पिलाने वाला “पाषण
युग का देश” बताकार.. हमें गयी गुज़री कौम से “नवाजते” रहे.., और
हमारे सत्यजीत रे से अन्य फिल्म निर्माताओं ने इस आग में घी डालकर अपने
व्यक्तीत्व को चमकाकर, इसे “जय हो” फिल्म
से अंतराष्ट्रीय ख्याती प्राप्त की.., ऑसकर
फिल्म की रेस में दौड़ते रहे.
२. दूसरी..., देश को
दीमक की तरह खोखला करने वाली हमारी क़ानून शाही द्वारा देश के बलात्कार व अन्य
गिरफ्तार अपराधियों का जेल में सत्कार, नागालैंड
के दीमापुर निवासियों ने कोबरा नाग बनकर..., लुंज
पुंज क़ानून, जो जनता को ढेंगा दिखा रहें थे इन दीमकों को चट-
कर देश में मीडिया-माफिया-मानवाधिकार..., जो इस “मावा” के खेल
पर पर ६८ सालों से अपना अधिकार मानता था.., उसे
जनता ने “देश का धिक्कार” बना कर, धुल
चटाकर.., एक नारा दे दिया है..., फैसले
में फासला मत बढ़ाओ , जनता पर जुल्म मत ढहाओ.., सावधान...!!!, अब जनता
आ रही है.. न्याय की रस्सी लेकर...
महिला
दिवस.,.नारी..,तुम्हारे
लिए क्या मिला, दिवस.., तुम तो अभी
भी हो बेबस...
मर्दानी ..., अब भरवाओं.., मर्दों से पानी...
राजनीती से समाज ने तुम्हारी पवित्रता को पतितता से, बेड रूम (BED ROOM-शयनयान) की वस्तु बनाकर, भष्टाचार की ऊंची उड़ान भरी है और देश का बेड-रूप बना दिया है....
राजनीती से समाज ने तुम्हारी पवित्रता को पतितता से, बेड रूम (BED ROOM-शयनयान) की वस्तु बनाकर, भष्टाचार की ऊंची उड़ान भरी है और देश का बेड-रूप बना दिया है....
३. नारी तुम सब पर भारी..., अब अपने मर्दों (सरपंच से नेता तक ) से कहों..., अब बेड रूम में तुम्हारे प्रपंच का खेल नहीं चलेगा..., भ्रष्टाचार के प्रपंच की पतितता से अब देश में नारी की कुरूपता का व्यव साय नहीं चलेगा
आओं.., अपने मर्दों से कहों.., राजनीती की बातें BED-ROOM में नहीं, घर के DRAWING –रूम (बैठक कमरे) में हो..., ताकि, मैं देश की एक नई तस्वीर बना सकूं...
अब तक तो.., देश के मर्द सत्ता के मद में देश का मधु पी रहें थे .....
४. आओं..., मर्दों से कहो..., देश की महिलाओं को जगाकर कहो.., अब, हम तुम्हारी बैसाखी नहीं..., बच्चा पैदा करने की मशीन नहीं..., अब हमारे संस्कारों की सम्मानता से.., हम देश के हर नागरिकों को समान प्यार से, उनके जीवन की प्रेरणा को और उज्जवलित करेंगें...
५. नारी..., तेरा प्यार दिल के आँसुओ से भरा रहता है, तुम्हारा दिल तो वात्सलय से २४ घंटे धडकता.. है... हर दु:ख पहुचाने वाले पति से बच्चे हर सख्श तक को आप माफ कर देती हो.. तकि आप की आँसू से वे अपने गलती का अहसास समझ कर प्रायश्चित (सुधर सके) कर सके,
६. आप तो माँ की रूप में , सौ बार अपने आँसुओ से मौका देती है....माँ.., तेरे आँसु सागर से भी गहरे है. लेकिन तेरे सागर के आँसु तो लोगो को जीवन मे कैसे तैरना है,वह सिखाती है...आज तक तेरे आँसु के सागर कोई भी डूबा नही है...क्यो कि इसमे वात्सलय का नमक है...
आपके खून में ही तो देश का वात्सल्य , अभिमान व देश की हरियाली छिपी है..., तुम आरक्षण की वस्तु नहीं देश के संरक्षण की धारा हो...
७. हमारे समाज के पिस्सुओं ने देश की बच्चियों से नारी को पतितता से वेश्यावृती के धन से अब बलात्कार की हुंकार भर कह रहें हैं..., युवाओं का यह है अधिकार.., है...
नारी.., समाज के पिस्सुओं ने देहव्यापार में धकेले ढकेले कर..., तुम्हारी पतितता में भी पवित्रता है..,
नारी.., इंसानों में सर्वोत्तम तुम ही और केवल तुम ही हो...
वेश्या पतिता नहीं होती, पतन को रोकती है /
पतित जन की गन्दगी , अपने ह्रदय में सोखती है/
जो विषैलापन लिए हैं घूमते नरपशु जगत में ,
उसे वातावरण में वह फैलने से रोकती है /
यही तो गंगा रही कर , पापियों के पाप धोती ,
वह सहस्रों वर्ष से , बस बह रही है कलुष ढोती,
शास्त्र कहते हैं कि गंगा मोक्षप्रद है, पावनी है ,
किसलिए फिर और कैसे वेश्या ही पतित होती ?
मानता हूँ , वेश्या निज तन गमन का मूल्य लेती ,
किन्तु सोचो कौन सा व्यापार उनका ,कौन खेती ?
और यह भी , कौन सी उनकी भला मजबूरियां हैं ,
विवश यदि होती न, तो तन बेचती क्यों दंश लेती ?
मानता यह भी कि वेश्यावृत्ति , पापाचार है यह ,
किन्तु रोटी है ये उनकी , पेट हित व्यापार है यह ,
देह सुख लेते जो उनसे, वही उनको कोसते भी,
और फिर दुत्कार सामाजिक भी , अत्याचार है यह /
गौर से देखो , बनाते कौन उनको वेश्याएं ,
और वे हैं कौन, जो इस वृत्ति को खुद पोषते हैं ?
पतित तो वे हैं , जो रातों के अंधेरों में वहां जा -
देह सुख भी भोगते हैं , और फिर खुद कोसते हैं .
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