१. जयप्रकाश
नारायण का बिहार .., अब अंध प्रकाश से जातिवाद की बहार.., नर मुंडों के परायण से
भ्रष्टाचार को ,अफीमी नारों के रावणों का
नारायण...,नारायण...,और उसमे गौ मांस का
तड़का..
२. जातिवाद के नरमुंडों के समीकरण का यह खेल है.., कही दलित , मुस्लिम व यादव के झोल से इनके वोट अपने झोले में डालने की प्रतिस्पर्धा
है..
३. क्या यह
चुनाव जातिवाद विरूद्ध विकास की लड़ाई साबित होगी या बिहार का विकास के ताबूत पर
जातिवाद की आखरी कील साबूत होगी
४. जयप्रकाश नारायण की इंदिरा गांधी की सरकार के भ्रष्टाचार से प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देने से इनकार करने
पर अदालत की अवमानना करने से, हुंकार के
बाद.., देश में १८ महीने आपातकाल लगाए जाने में, जेल जाने वाले नेता, जयप्रकाश
नारायण की अक्टूबर १९७९ में मृत्यू होने
के बाद अपने को क्रांती का स्वंय –भू नेता
मानकर, बिहार प्रदेश को अंध प्रकाश कर, जातिवाद
के प्रकाश से चारा व अन्य घोटालों से अपनी सत्ता चमकाते रहे ..
५. नीतीश
सरकार ने बिहार में आपातकाल के दौरान “मीसा” में जेल गए लोगों को, १८५७ के
क्रांतीकारियों से महान बताकर पेशन की
घोषणा कर दी ..
६. जयप्रकाश नारायण ने तो कहा था, देश में सबसे अधिक खनिज होने के बावजूद बिहार गरीब क्यों.???, इस जीत का रहस्य तो..., खनिज से ज्यादा बिहार में
नेताओं के लिए जातिवाद,धर्मवाद के उत्प्रेरक खनिज से..,
बिहार भ्रष्टाचार के बहार से गाय भैसों व अन्य जानवरों के चारे से,
मुस्लिम यादव के भाई- चारे नारे के आड़ में, २५
सालों तक चारे को डकारकर , प्रदेश के गरीबों को बहाकर..,
एकछत्र राज्य करते रहे...,
७. दिवंगत महान व्यंगकार
लेखक श्री हरीशंकर परसाई के १० हजार से अधिक राजनितिक लेख आज भी जीवंत हैं. १९६०
के दशक में.., उन्होंने बिहार के बारे में
लिखा था, श्रीकृष्ण भगवान् मुझे मिले थे. उन्होंने, कहा मैं बिहार में चुनाव लडूंगा और लोगो को कहूँगा में श्रीकृष्ण भगवान्
हूं , मैं आसानी से जीत जाऊंगा .., तब
मैंने उनसे कहा आप जब तक यह नहीं कहोगे मैं श्रीकृष्ण “यादव”
हूँ , तब तक आप चुनाव नहीं जीत सकोगे. भगवान्
और मेरी शर्त लगी भगवान् श्री कृष्णा के विरोध में यादव नाम का उम्मीदवार खड़ा था
और वह जीत गया और भगवान् श्री कृष्ण हार गए
८. दोस्तों.., देश का सबसे बड़ा
जहर “अशिक्षा” है.., जिसकी वजह से जनता गरीब होते जा रही है.., खोखले
वादों के अफीमी नारों का शिकार हो जाती है.., और वोट बैंक की
राजनीती करने वाले अपने को देश का मसीहा कहकर काले धन से अमीरतम बनकर अपने को
अप्रतिम कहकर सत्ता को जातिवाद, भाषावाद,धर्मवाद व घुसपैठीयों के कोड़े से जनता को पीटकर,अधमरा
कर, महंगाई बढ़ा कर कर्ज के गर्त से देश को डूबा रहें है.
11. इस लोकतंत्र
में आप और हम वोट बैंक के मोहरे हैं.., ५साल के रोते हुए
चेहरे हैं.. राममनोहर लोहिया ने सही कहा था ..., जिंदा कौमे
५ साल का इन्तजार नहीं करती है.
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