१. कृपया समय देकर लम्बा लेख जरूर पढ़ें.., १३ सालों से अपने गुनाहों को छलका-कर, क़ानून का छिलका निकाल कर, उसके इतने छेद कर, सलामत खान के दबंगी रंग की ५ साल की सजा भी उपहास साबित हुई..., क़ानून कहां से साँस ले कहा से ......!!!!, इसी असमंजस में अपनी सलामती से सलमान खान को ३ घंटे में ३३ घन्टे की जमानत से मीडिया ने भी ३०० करोड़ रूपये ..., सट्टेबाजों ने ३००० करोड़ का सट्टे से.., मेरे महान संविधान से हट्टे-कट्टे हो गए.., बाद में 30 हजार की अमानत की जमानत से सलमान खान सही सलामत घर पहुँच गए...
२. TRP के खेल में १३ साल के पीड़ित के घाव सहलाने के खेल में क़ानून को कैसे सुलाया जता है..., और हाई कोर्ट के जजों के आँखों में कैसे नोट की पत्ती से पट्टी बांधी जाती है..., इसकी नग्नता का खेल से , जनता भी अपनी नग्न आँखों से देखकर भी ..., आपस में बुद -बुदाते हुए.., दबी जुबान से विरोध की सीमा में रहती है...
३. अब इस मुकदमे ने भी दम तोड़ दिया है..., पीड़ित तो और ५० साल तक इस क़ानून के पेड़ में लटके रह-कर अपना दम तोड़ देंगें..., और पेड मीडिया भी ऐसे पेड़ में लटके लोगों से, आगे भी सुनहरा अवसर देख-कर TRP से पेट भरने के लिए कमर कसने के लिए तैयार रहेगी.., और TRP से करहाते पीड़ित को सहलाते का दंभ भरते रहेगी.., और यह एक दिन की हैडलाइन ..., क़ानून से पीड़ित की DEAD –LINE का भविष्य भी लिख देगी
४. मैने एक कहावत सुनी है, जो मेरे दिमाग को झकझोर देती है…?????? मारने वाले से बचाने वाला बडा होता है.,
यदि मेरे देश के संविधान मे यह कानून जोड दिया जाय कि अपराध करने वाले से अपराध करवाने वाला मुख्य दोषी है तो देश
के 50-80% पुलिस थानों के पुलिसों व सत्ताधरिओं व आतंकवादिओं का सफाया हो जायेगा
५. दोस्तों...,न्याय के साथ जब तक वकीलों की दलाली और मोहताजी जुड़ी रहेगी, तब तक कुछ नहीं होगा। हमारी सरकार को डेढ़ सौ साल बनाई गई अदालती प्रक्रियाओं को बदलने की गरज नहीं है। अदालतों में जन भाषा का कोई स्थान नहीं है। अंग्रेजों के स्पेलिंग मिस्टेक को ठीक करने तक की हिम्मत सरकार में नहीं है। जब आपको सत्ता परिवर्तित हिन्दुस्तान (जिसे सरकार आजाद इंडिया कह कर झूम रही है?) में प्रशासन चलाने की तहजीब ही नहीं आई तो फिर कानून पर कानून बनाते जाइए, कोई फर्क नहीं पड़ेगा। ऐसे में यह सोचना होगा कि हर मर्ज की दवा कानून पास करना नहीं है। पहले कानून के रखवालों को उस लायक बनाना होगा।
६. देश के 20 करोड पक्षकार (वादी-प्रतिवादी) न्याय के इंतजार में है ?
हमारे देश मे आज;
31 सुप्रीम कोर्ट है
895 हाई कोर्ट है
22000 निचले कोर्ट
17 लाख वकीलो की लूटने वाली भारी भरकम फौज है, जो वादी-प्रतिवादी के साथ दुखों का व्यापार करते है, फिर भी देश मे 3 करोड 50 लाख से भी ज्यादा मामले विचाराधीन है ?
७. आज न्यायालय की हर सीढी, आम आदमी की बरबादी की सीढी है, इस एक-एक सीढी को चढने मे आदमी की एक-एक साल की कमाइ चले जाती है, पूरी सीढी चढने के लिये बच्चों की भी कमाइ लगानी पडती है, इस न्यायलय की सीढी मे आम आदमी अवसाध मे जाकर यदा कदा, यदि उसे न्याय भी मिल गया तो उसे उच्च न्यायालय के सीढी मे चढने के लिये अपनी जमीन बेचनी पढती है, और उच्चतम न्यायालय मे इंसाफ के लिये घर बार बेच कर वह बंजारे का जीवन जीता है.
८. आज देश भर मे 17 लाख वकीलो की भारी भरकम फौज है, जो गरीबों की रोटी छीन कर अपना जीवन सँवार रहे है,यदि हमारे कानूनो मे पारदर्शीता होती, तो ये वकीली पेशा, यदि शिक्षक के रूप में परिवर्तित होते तो आज हमारी शिक्षा दर 100% होती, आज तक इस संविधान से हमारे अनन्य जंगली पेडों को , कानून के कागज बनाने के लिये बलि (काटे गये) कर दिए हैं,
९.वही, सफेद पोश नकाब वाले राजनैतिक व माफियाओं के लिये उच्चतम न्यायालय, उनके अपने कारनामों की प्रेरणा स्थली है. आज के सत्ता के दिग्गजो व माफियाओ के लिये यह सुरक्षा कवच बन गया है.
१०.आज एक जज का कार्यकाल 2-3 साल तक होता है,जब वह मुकदमे का पहलू समझने लगता है, तो उसका कार्यकाल पूरे होने से पहिले, निम्न अदालतों में वह कानून के तराजू मे धन का वजन देख कर , धन का गुलाम हो कर , अपना विवेक / चरित्र खो कर, अनचाहे निर्णय देकर अपने अवकाश जीवन का मजा लेता है, यही निर्णय उच्च न्यायालय मे उलट दिये जाते है और निम्न अदालतों के जज, जो अवकाश प्राप्त हो जाते है, उन्हे सजा नही मिलती है ?.
आज एक मुकदमें का सुप्रीम तक,मुकदमा लडने पर 25-30 साल लग जातें है, इसका अर्थ यही हुआ कि एक निर्णय के लिये संविधान (कानून) ने सभी जजों व उनके सिपहालकार (लेखाकारों से चपरासी की फौजों व अन्य लोगों) को 25-30 साल तक मुफ्त वेतन दे रहा है, और वे कानून का शहद पी कर सत्ता के गुलाम हो जाते हैं. और वादी-प्रतिवादी को हडकाते हुए, दोनो पक्षों से तारीख पर तारीख की फीस (ENTRY FEES) वसूलते हैं, और वादी -प्रतिवादी के घरों मे कानून के कागज का पुलिंदा जमा हो जाता है, 25-30 सालो मे कानून के कागज को, दीमक कानून के शब्दों को खा कर अपराधी निर्दोष साबित होता है..??? , यो कहे अपराधी दुध का धुला साबित होता है?. और 25-30 सालों की कानून की परिभाषा की मेहनत शून्य हो जाती है?
११. यह जो, अंग्रेजो के जमाने का कानून व संविधान है
अब यह, सत्ताखोरो का स्व: विधान बन गया है. सफेद पोश नकाब वालों का तिहाड जेल (सफेद जेल- सफेद पानी – मिनरल पानी -) का कारागृह एक आरामगृह बन गया है.
जब वीर सावरकर के अंडमान जेल मे अमानवीय अत्याचार के वजह से जेलर बैरी को काला पानी के जेल के कृत्य से ब्रिटिश की राजधानी को थर्राकर रख दिया था. विश्व के गुलाम देशों के नागरिकों को, अंग्रेजों से नफरत होने लगी थी..., (याद रहे, जेलर बैरी ने अंग्रेज प्रशासकों को बताया था कि वीर सावरकर को प्रताडना व कडी सजा के बावजूद वे टस से मस होने वालो मे से नही है, वह फौलादी दिल वाला इंसान है और उनके {वीर सावरकर} जेल के कार्यकालमे 90% से ज्यादा कैदी साक्षर हो गये हैं, - इनमे से 60% से ज्यादा मुसलिम कैदी थे
१२. यह वही सविधान है..?????, जब कलमाडी को, तिहाड जेल, सजजो जो जेल- सफेद पानी) मे सजा होने पर तिहाड जेल के जेलर ने अपने कार्यालय मे कलमाडी को, हलवा पूरी, व सफेद पानी (मिनरल पानी) खिलाते-पिलाते पकडे जाने पर , जेलर (सफेद पानीसफ़ेद ) का तबादला, देश की राजधानी से, अंडमान जेल (काला पानी) मे कर दिया. दिया
१३. अंडमान जेल में कडी ठंड मे , वीर सावरकर को कंबल नही दिया जाता था ताकि ठंड से वे ठिठुर – ठिठुर कर मर जाये, इस दंड का भी तोड, वीर सावरकर ने निकाल लिया, वे रात भर शरीर गर्म रखने के लिये दंड-बैठक करते थे, और इसके बाद, उन्हें और उनके जेल के साथियों को,सवेरे से शाम तक कोल्हू के बैल की तरह से तेल निकालना पडता था. जबकि आज तिहाड जेल के सफेद पोश नकाब वाले राजनैतिकों व माफियाओं को, हीटर व वेटर की एशों-आराम की सुविधा है.
१४. वही काँमन वेल्थ गेम के खेल घोटाले के शंहशाह, कलमाडी, जिसने भ्रष्टाचार की बालवाडी, के रूप मे नौकरशाहों, सत्ताशाहों की नई पीढी मे भ्रष्टाचार का बिगुल फुका था. काँमन वेल्थ गेम की सफलता का दावा करते हुए,कलमाडी ने ओलंपिक खेलो का भी आयोजन का दावा ठोक दिया और, अब हम 25 लाख करोड के घोटाले के लिये तैयार है.
१५. पिछली सरकार के कार्यकाल मे प्रधानमंत्री कार्यालय का बयान आया था कि हमने देश की इज्जत बचाने (यों कहें, जनता की इज्जत लुटाकर) के लिये 1 लाख करोड रूपये खर्च किये है.
इसी संविधान को वापस याद करें, यदि देश मे सत्ता परिवर्तने के बाद एक रेल्वे के बुकिग कर्लक (बाबू) को 2 रूपये रिश्वत लेने पर 3 साल की सजा मिली , तो आप सोच सकते है की 1लाख करोड रूपये के गोलमाल मे देश के कलमाडी ( सत्ताधारिओ के,बलमा-डी) को कितनी सजा मिलनी चाहिये.
१६. 2011 के अंत मे दिग्विजय सिंग ने पुना मे अपने सम्रर्थकों के साथ कहा, अब कलमाडी को बहुत सजा मिल चुकी है, अब सुप्रीम कोर्ट को उन्हे रिहा कर देना चाहिये, और उनके पीछे समर्थको का झुंड “भारतमाता की जय” के नारे लगा रहे थे. बडे ताज्जुब कि बात है कि पिछले साल 26 जनवरी 2012 के कुछ दिन पहले ही , सुप्रीम कोर्ट ने देश को, क्या? संविधान के तोहफे के रूप मे कलमाडी को रिहा किया?. या दिग्विजय सिंग के उदघोष से?,
पुना में, कलमाडी को काँग्रेस कार्यकर्ताओं ने ढोल नगाडों के साथ “पुना का राजा” बनाकर स्वागत किया.
१७. एक बात और जिस वीर सावरकर ने, अपने अदभुत विचारों से पुना को अपनी कर्म भूमी बनाकर युवा क्रांति का बिगुल फुकनें पर, उनकी ख्याति राष्ट्रीय स्तर पर पहुची, वही 1लाख करोड रूपये के गोलमाल मे देश के कलमाडी ( सत्ताधारिओ के,बलमा-डी) ने पुना के साथ देश की बेज्जती अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कर दी और फिर भी काग्रेस के लाल (कार्यकर्ता) “भारतमाता की जय” के नारे लगा रहे है.
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