Tuesday, 24 March 2015

“सत्ता एक मेवा है , उसकी जय है और सत्य आत्महत्या कर रहा है “ और “मेरा संविधान महान, यहाँ हर माफिया पहलवान “ खादी की आड़ में गरीबों को. अफीमी नारों के खंजर से मारा जा रहा है...


“सत्ता एक मेवा है , उसकी जय है और सत्य आत्महत्या कर रहा है “ और “मेरा संविधान महान, यहाँ हर माफिया पहलवान “ खादी की आड़ में गरीबों को. अफीमी नारों के खंजर से मारा जा रहा है...
बापू को आधार बना कर आम जनता (देखू) उससे सवाल पर सवाल किये जा रही है , देश की बदहाल स्थिती पर उसे रोना आ रहा है, पर क्या करे वह मजबूर है।
बापू के तीन बंदर भी मस्ती मे चूर है वे भी बदले हालातो का पूरा आनन्द उठा रहे है। सौ मे नब्बे बैइमान फिर भी मेरा भारत महान के कहावत लोगो की रग रग मे ऐसे बस गइ है कि बापू के तीन बंदर बुरा मत देखो, बुरा मत कहो, बुर मत सुनो कि मुख्य भूमिका मे आ गये है, बेचारे बन्दर करे तो क्या करे उन्हे बापू ने ही तो आदेश दिया था इसलिये वे बापू के कहे अनुसार चल रहे है, बापू के तीन बंदरो ने उनके आदेशों को सुना तभी तो देश की हालत इतनी बिगड गइ है।
बापू के तीन बंदर अब मस्त कलंदर बन गये है, उनके बीच देश के बदहाल के बारे मे चर्चाए तो होती है पर व इच्छा होने के बावजूद देश के परिस्थिती बदल नही सकते , देश की इस बदली हालत पर एक संवादात्मक रिपोर्ट ... ।
इस संवादात्मक कथानक के माध्यम से यहाँ उन कारणो का भी उल्लेख किया गया है, जिसमे कभी सोने की चिडिया कहा जाने वाला देश आज आज भ्रष्टाचारियों के हाथ की कठपुतली बंनकर रह गया है। वैसे यह देश का दुर्भाग्य ही रहा है जिसे राष्ट्रपिता पिता की झूठी उपाधि से नवाजते रहे है, उसने अहिसा के नाम पर देश के साथ छल किया, महात्मा गाधी ने अहिसा शब्द भ्रामक अर्थ कर... देश्वासियोको गुमराह किया। उन्होने शांति को हिंसा का पर्याय मानकर देशभक्त युवावो को कुंठित कर दिया । हत्यारो के समक्ष आत्मसमर्पण को उन्होने अहिसा के रूप मे महिमा-मंडित कर अपने नाम के आगे महात्मा शब्द लिखवा लिया , पर हकीकत यह है कि महात्मा गाधी ने भारत को एक “बुझदिल“ लोगो का देश बनाने का काम किया और यही उसी का नतीजा है आज देश मे भ्रष्टाचार, आतकवाद सिर चढ कर बोल रहा है.. और इसी देश का श्लोग्न बन गया है “मेरा संविधान महान, यहाँ हर माफिया पहलवान “ और सत्यमेव जयते की आड़ में , सत्ताखोर , चुनाव में धर्मवाद, अलगाववाद,जातिवाद, व घुसपैठीयों के आड़ में सट्टा लगाकर चूनाव जीतने पर... भ्रष्टाचार से चूना लगाकर
दूसरा श्लोगन बन गया है ... “सत्ता एक मेवा है , उसकी जय है और सत्य आत्महत्या कर रहा है
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आओं, पार्टी नहीं देश का पार्ट बने, “मैं देश के लिए बना हूँ””, देश की माटी बिकने नहीं दूंगा , “राष्ट्रवाद की खाद” से भारतमाता के वैभव से, हम देश को गौरव से भव्यशाली बनाएं...
इन., ‘बन्दरों” के कहने का सार यही है........????
चाहे जो हो धर्म तुम्हारा चाहे जो वादी हो । नहीं जी रहे अगर देश के लिए तो अपराधी हो ।
जिसके अन्न और पानी का इस काया पर ऋण है । . जिस समीर का अतिथि बना यह आवारा जीवन है ।
जिसकी माटी में खेले, तन दर्पण-सा झलका है । उसी देश के लिए तुम्हारा रक्त नहीं छलका है ।
तवारीख के न्यायालय में तो तुम प्रतिवादी हो । नहीं जी रहे अगर देश के लिए तो अपराधी हो ।
क्या आप अब भी इन बन्दरो को देखकर मूक दर्शक बनकर डूबते हुए देश को, अब भी देखते रहोगे...

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