Thursday, 19 February 2015



छत्रपती शिवाजी के जन्म दिन पर विशेष....,
१.       इस देश की पुण्य भूमी में वीर सावरकर का अवतरण गुलाम भारत में  छत्रपती शिवाजी और सत्ता परिवर्तने के बाद वीर महाराणा प्रताप के रूप में हुआ..,जिन्होंने खंडित भारत के विरोध में अपने “राष्ट्रवादी” विचारों को ज्वलंत रखने के लिए “सत्ता मोह” त्याग कर, “घास की रोटी” खाना पसंद किया   जिनका  ऋण देश कभी चुका नहीं सकता है...
२.       सावरकर जो वीर ही नही परमवीर थे, इस धरती पर चाणक्य के बाद दुरदर्शी क्रातिकारी वीर सावरकर ही थे ,जिनकी दहाड् से अग्रजो का साम्राज्य हिल उठता था, मै तो उन्हे देश के क्रांति का चाणक्य मानता हूँ,? उनकी भूमिका अग्रेजो के समय वीर शिवाजी महाराज व सत्ता परिवर्तने के बाद वीर महाराणा प्रताप की थी? आज तक हमारे देश्वासियो को यह पता नही है, सुभाष चन्द्र बोस, चद्रशेखर आजाद व सरदार भगत सिंग मे क्राति का जन्म वीर सावरकर द्वारा हुआ?
३.       गांधी ने शिवाजी आदि को पथभ्रष्ट देशभक्तकहा, गांधी ने कट्टर मुसलमानों के तुष्टिकरण के लिए भारत के राष्ट्रीय वीरों वीरो- महाराणा प्रताप, छत्रपति शिवाजी और गुरु गोविन्द सिंह को पथभ्रष्ट देशभक्तकहा.
४.       वीर सावरकर वे प्रकांड विद्वान,कवि,लेखक,सभी धर्मों के ज्ञाता के साथ प्रख्यात इतिहासकार थे उन्हें मराठी साहित्य का कालिदास भी कहा जाता है... उनके पास राष्ट्रवाद  के ५६ गुण थे, यदि वे राजयोग पाने के लिए गांधी की तरह पिछलग्गू कभी नहीं बने.
५.       वीर सावरकर ने अंडमान जेल में दो जन्म के कारावास की सजा को “भारतमाता की, गुलामी की बेड़िया” तोड़ने के लिए अपने जीवन को धन्य माना

६.       .महात्मा गाँधी का कहना था-शांति- शांति-शांति
जबकि वीर सावरकर का नारा था -क्रांति-करांति-क्रांति|
लेकिन अफ़सोस आज हम उस मुकाम पर खड़े है जहाँ से इतिहास हमें चुनोती दे रहा है| आज कि पीढी वीर सावरकर के बारे मैं कुछ ज्यादा नहीं जानती है क्योंकि धर्मनिरपेक्षता का रोना रोने वालो ने देश मैं क्रांति का उदघोष करने वालो से अन्याय किया, उनका पूरा इतिहास सामने ही नहीं आने दिया| लाल रंग मैं रंगे बिके हुए इतिहासकारों ने क्रांतिकारिओं के इतिहास को विकृत किया | पाठ्य पुस्तकों से उनके जीवन सम्बन्धी लेख हटाये गए|
७.       एक मात्र वीर सावरकर ही.... 
ज़्यादातर लोग भारत की आज़ादी को लेकर भ्रमित दिखाई देते हैं. चाटुकार संस्कृति के पोषक इतिहासकारों ने सच्चाई पर पूरी तरह से पर्दा डाल रखा है. दरअसल गाँधी और नेहरू नाम के छद्मावरण ने आज़ादी के असली हीरो को उनका वाजिब सम्मान मिलने से दूर रखा . गाँधी के वजह से भारत को 20 वर्ष पहले मिलने वाली आज़ादी 20 वर्ष बाद मिली. अगर भारत इनके आंदोलनों के वजह से आज़ाद हुआ, तो अफ्रिका और दक्षिण अमेरिका के वे छोटे-छोटे देश कैसे आज़ाद हुए, वहाँ कोई गाँधी-नेहरू नही था, जो भूख हड़ताल या आंदोलन कर रहा हो. सच्चाई यही है की दूसरे विश्वयुध के बाद इंग्लैंड की ताक़त इतनी क्षीण हो गई थी की वह अपने साम्राज्य के छोटे-छोटे देशों को भी काबू मे रख पाने में असमर्थ हो गया था, फिर भारत जैसे विशाल देश को अपने कब्ज़े मे रखना उसके वश की बात नहीं थी.
८.       अगर आज़ादी में किसी का योगदान है, तो वह उन वीरों का है, जिन्होने, भारत माता के लिए लिए अपनी जान न्योछावर करने वाले उन शहीदों का है, जिसने अपनी ज़ान दाव पर लगाके अँग्रेज़ों के दिमाग़ में ख़ौफ़ पैदा किया. उन्होंने ये सोंचने पर मज़बूर किया कि क़दम-क़दम पर उन्हें इस तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा. हर मोड़ पर उनका सामना सरदार भगत सिंह, चंद्रशेखर आज़ाद, अशफ़ाक़ उल्ला ख़ान और नेताजी सुभाषचंद्र बोस जैसे क्रांतिकारीओं से होने वाला. हमें उनका एहसानमंद होना चाहिए जिन्होंने माँ-बाप, पत्नी, भाई बंधु और तमाम सुख-सुविधायों का त्याग करके हँसते-हँसते देश के लिए अपने प्राणों की बलि दे दी. लेकिन यहाँ कहानी बिल्कुल उल्टा है, हम गला फाड़-फाड़ के उनकी जयजयकार करते हैं, जिन्होंने सत्ता सुख पाने के लिए देश का बंदर-बाँट कर दिया. यह देश गाँधी-नेहरू या जिन्ना के पिता की जागीर नहीं थी... जिसको इन लोगों ने तीन टुकड़ों मे बाँट दिया.
९.       भगतसिंह को फाँसी दी तब कहां थे.., गाँधी ,क्या फाँसी देना अहिंसा नही है? क्यों..?, आवज़ नही उठायी ? क्यों..?, भारत के सैनिक दूसरे विश्वयुद्ध मे ब्रिटन के कारण मारें हाय क्या ये हिंसा नही थी? क्यू नेताजी की आजाद हिंद फौज के सैनिको को हमारे ही सैनिको ने मार डाला ?क्या वो हिंसा नही थी ,उधम सिंह जेसे देशभक्त को जलियावाले बाग के जननरसंहार का ऑर्डर देने वाले को मार डालने की वजह से आपने गाँधी-नेहरू ने आतंकवादी बताया.. क्या ये सही है
बिल्कुल सही 1914 मे भारत स्वतंत्र हो जाता अगर लोकमान्य तिलक की बात मानकर कांग्रेस काम करती आज़ादी के बदले पहले विश्वयुद्ध मे मतदान का प्रस्ताव तिलकजी ने रखा था और वही सही था..., आप तो 20 साल की बात कर रहे है हमे 40 साल पहले आज़ादी मिल जाती.
१०.   हमने केवल कुछ पुतलों को, चौराहों पर खड़ा किया,
और कुछ लोगों को केवल, तसवीरों में जड़ा दिया।।
हमें आजादी मिलते ही सब, अपने मद में फूल गए,
शास्त्री, वीर, सुभाष, विनायक, सावरकर को भूल गए।
कयोंकि इनके नामों में कुछ, वोट नहीं मिल सकते थे,
इनको याद दिलाने से, सिंहासन हिल सकते थे।।
हमने मोल नहीं पहचाना, राजगुरू कीफाँसी का,
हमने ऋण नहीं चुकाया, अब तक रानी झाँसी का।
बिस्मिल जी की बहन मर गई, जूठे कप धोते-धोते,
और यहाँ दुर्गा भाभी ने, दिन काटे रोते-रोते।।
अब भी समय नहीं बीता है, भूलों पर पछताने का,
भारत माता के मंदिर में, अपने शीष झुकाने का।
जिस दिन बलिदानी चरणों पर, अपने ताज धरोगे तुम,
उस दिन सौ करोड़ लोगों के, दिल पर राज करोगे तुम।।


११ महात्मा गाँधी का कहना था-शांति- शांति-शांति
जबकि वीर सावरकर का नारा था -क्रांति-करांति-क्रांति|

लेकिन अफ़सोस आज हम उस मुकाम पर खड़े है जहाँ से इतिहास हमें चुनोती दे रहा है| आज कि पीढी वीर सावरकर के बारे मैं कुछ ज्यादा नहीं जानती है क्योंकि धर्मनिरपेक्षता का रोना रोने वालो ने देश मैं क्रांति का उदघोष करने वालो से अन्याय किया, उनका पूरा इतिहास सामने ही नहीं आने दिया| लाल रंग मैं रंगे बिके हुए इतिहासकारों ने क्रांतिकारिओं के इतिहास को विकृत किया | पाठ्य पुस्तकों से उनके जीवन सम्बन्धी लेख हटाये गए|
वीर सावरकर एक महान राष्ट्रवादी थे| भारतीय स्वंत्रता संग्राम मैं उनकी भूमिका अतुलनीय है| वीर सावरकर भारत के पहले क्रन्तिकारी थे जिन्होंने विदेशी धरती से भारत कि स्वाधीनता के लिए शंखनाद किया| वो पहले स्वाधीनता सेनानी थे जिन्होंने भारत कि पूर्ण स्वतंत्रता कि मांग की| वो पहले भारतीय थे जिनकी पुस्तके प्रकाशित होने से पहले ही जब्त कर ली गई और वो पहले छात्र थे जिनकी डिग्री ब्रिटिश सरकार ने वापिस ले ली थी| वस्तुत: वह भारतीय स्वाधीनता संग्राम के अमर सेनानी, क्रांतिकारिओं के प्रेरणास्त्रोत, 
अद्वितीय लेखक, राष्ट्रवाद के प्रवर्तक थे, जिन्होंने अखंड हिंदुस्तान के निर्माण का संकल्प लिया|
उनका सारा जीवन हिंदुत्व को समर्पित था| उन्होंने अपनी पुस्तक 'हिंदुत्व' मैं हिन्दू कोण है की परिभाषा मैं यह श्लोक लिखा--

१२.. १९२४ में कांग्रेस के प्रसिद्द नेता मौलाना मोहम्मद अली ने भी वीर सावरकर से भेट की. उन्होंने वीर सावरकर को देश भक्ति, त्याग, भावना आदि की मुक्त कंठ से प्रशंसा की किन्तु शुद्धि आन्दोलन का विरोध किया. इस पर सावरकर ने स्पष्ट शब्दों में कहा पहले मुल्ला मौलवियों द्वारा हिन्दुओ को मुसलमान बनाने से रोका जाए, इसके बाद शुद्धि आन्दोलन को रोकने पर विचार किया जायेगा. कांग्रेस के खिलाफ आन्दोलन के भी वीर सावरकर ने विरोध में विचार व्यक्त किये इससे मौलाना मोहम्मद अली रुष्ट हो गये और अनायास ही उनके मुह से निकल गया यदि मुसलमानों के सुझाव न माने गये, तो उनके विश्व में अनेक देश है, वे वहां चले जाने के लिए विवश हो जायेंगे .

१३. एक राष्ट्रीय स्तर के नेता के मुंह से ऐसी बातें सुनकर सावरकर ने स्पष्ट शब्दों में उत्तर दिया आप पूर्ण:तया स्वतंत्र है, फ्रंटियर मेल प्रतिदिन बहरत भारत से बाहर जाती है, आप प्रतीक्षा क्यों करते हैं ? बोरिया बिस्तर लेकर तुरंत भारत से विदा हो जाइये.
मौलाना को आशा भी नहीं थी की उन्हें ऐसा उत्तर मिलेगा.खीझ कर उन्होंने कहा आप मुझसे बहुत बौने है अत: मैं आपको दबोच सकता हू
सावरकर भी तुरंत ही बोल पड़े मैं आपकी चुनौती स्वीकार करता हूं , किन्तु आप यह नहीं जानते कि शिवाजी महाराज अफज़ल खान के समक्ष्य बोहोत बहुत बौने थे परन्तु उस नाटे कद वाले मराठा ने कद्दावर पठान का पेट फाड़ डाला था”, यह सुनकर मौलाना को अपना सा मुंह लेकर जाना पढ़ा. 

१४     याद रहे......,कांग्रेस अध्यक्ष कट्टर मौलाना मुहम्मद अली गौहर ,जो एक कट्टर धर्मांध मुसलमान थे, आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से पढ़े थे, जो, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए, वरन कहना चाहिये गांधीजी द्वारा मनोनीत किये गये, ये वही थे जिन्होंने कांग्रेस के अध्यक्षीय मंच से अनुसूचित जातियों को हिन्दू तथा मुसलमानों के बीच बराबर बाँट देने की धर्मांध मांग रखी थी. ये वही थे जिन्होंने गांधी को महात्मा कहने से इनकार कर दिया था और खुल्लमखुल्ला घोषणा की थी की एक व्यभिचारी और गिरा हुआ मुसलमान भी मिस्टर गाँधी से बेहतर है!ये वही थे जिन्होंने गांधीजी को खिलाफत आन्दोलन में भाग लेने को मजबूर किया था. यही मौलाना था, जिन्होंने बड़े घमंड के साथ कहा था की जिस दिन वे गांधीजी को मुसलमान बना लेंगे, वह दिन उनकी जिंदगी का सबसे सुनहरा दिन होगा. ऐसे धर्मांध मौलाना को गांधीजी ने, न केवल महान, प्रगतिशील, देशभक्त, राष्ट्रीय और खरा सोना कह कर प्रशंसा की थी वरन कांग्रेस के अध्यक्ष पद की ऊंचाइयो तक ऊपर उठाया था.
१५      महात्मा गाँधी भी मार्च १९२७ में वीर सावरकर से मिलने रत्नागिरी गए इन दोनों महापुरूषों की विचारधाराओं में आमूल परिवर्तन होते हुए भी गांधी ने सावरकर के ज्ञान देशभक्ति आदि गुणों के प्रशंसक थे.गांधीजी ने सावरकर के शुद्धि आन्दोलन की आलोचना करनी प्रारंभ कर दी. इस पर वीर सावरकर निर्भिक स्वर में बोले मुसलमानों ने भारत में एक हाथ में कुरआन तथा दुसरे हाथ में तलवार लेकर हिंदुओं का बल पूर्वक धर्म परिवर्तन किया. ऐसी स्थिति में उन हिन्दुओ को उनके धर्म के महत्व से अवगत करा कर पुन: अपने धर्म में वापिस लाना एक राष्ट्रीय कार्य है.
इसके साथ ही उन्होंने गांधीजी को सावधान किया कि मुस्लिम लीग के नेता वास्तव में भारत को एक मुस्लिम राष्ट्र के रूप में बदलना चाहते है. जो सत्य हुई ..
१६     ..जब तक देश जातिवाद, भाषावाद, अस्पर्श्यिता की बेड़ियों में जकड़ा है.., तब तक देश एक गुलामी से दूसरी गुलामी में बंधा रहेगा..., और हिंदुत्व का पतन के साथ देश विखंडन के कगार पर जाएगा ...
सावरकर के अनुसार हिन्दू समाज सात बेड़ियों में जकड़ा हुआ था।।
१. स्पर्शबंदी: निम्न जातियों का स्पर्श तक निषेध, अस्पृश्यता
२. रोटीबंदी: निम्न जातियों के साथ खानपान निषेध
३. बेटीबंदी: खास जातियों के संग विवाह संबंध निषेध
४. व्यवसायबंदी: कुछ निश्चित व्यवसाय निषेध
५. सिंधुबंदी: सागरपार यात्रा, व्यवसाय निषेध
६. वेदोक्तबंदी: वेद के कर्मकाण्डों का एक वर्ग को निषेध
७. शुद्धिबंदी: किसी को वापस हिन्दूकरण पर निषेध
ऐसी उनकी ४० से ज्यादा भविष्यवाणीयां, जिनकी हमने अवहेलना की है..., वीर सावरकर का इस देश पर महान ऋण है। वे अधिकांश क्रान्तिकारियों के लिये प्रेरणा के स्रोत थे। आज भी वह हर सच्चे भारतीय के लिये प्रेरणा के स्रोत हैं !!!!!
                        

अब इस दुनिया ऐसा वीर सावरकर दुबारा पैदा नही होगा? देश के इतिहास को अन्धेर मे रखकर यो कहे देश के इतिहास को दफन कर दिया है….????????? कैलाश तिवारी कृपया वेबसाईट की यात्रा करें... meradeshdoooba डॉट com से

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