दिग्विजय,ने अपने बडबोले पन से कांगेस को गड्डे में डालकर, अपने चरित्र से कांग्रेस की कब्र बनाने में लगे है... अब बुढापे में डींग के ढोंग से मर्यादा को ताक में रखकर किसी और के गड्डे में गिरकर दीवाने हो गए हैं ...
नैतिक पतन
राजनीति को गाली देने वाले राजनीति करते है!
प्रजातन्त्र के मरूद्यानो मे! घोडे, खच्चर सब चरते है!
षब्द भाव के घावो! की कुण्ठा को स्वय! बताते है!
नैतिकता मे! जीने वालो! की अपनी औकाते! है!
उॅ!ची बाते! करने वाला नीचे क्यो! गिर जाता है
ये भारत का जन - मानस है भीड़ स्वय बन जाता है
फिर होती है ठेकेदारी डेढ़ अरब नर - मुण्डो की
आदर्षो! मेॅ छिपी हुयी है देख सियासत गुण्डो! की
इतना तो मै!भी समझ गया,ये कच्चा फल है टूट गया
सम्मान मिला तो,हल्केपन से म!जिल पथ भी छूट गया
झूठी सच्ची तारीफो! से लक्ष्य स्वय! गिर जाते! है!
नौ - सीखिया फौजो! से राजा ही मारे जाते है!
अन्ना तो अब निपट गये,बष बाबा जी की बारी है
वैष्या जब तक गूॅ!गी है बष ,खेल तभी तक जारी है
मुॅ!ह खुलते ही षब्द स्वय!की भाव-भ!गिमा कह देता है
प्रजा - तन्त्र की नावो! को व्यभिचार हमेषा से खेता है
राजनीति मुर्दो की छोडो ,भजन करो अब गाॅ!वो मे!
क्यो! खाते हो दर-दर ठोकर ,मत कूदो स!भावो! मे!
काले धन से स्वाभिमान और लोकपाल बह जायेगा
क्या कलियुग मे! अन्ना बाबा भजन सनातन गायेगा
हद्द हो गयी प्रजातन्त्र की, नौट!की दिखलाते हो
चैराहे के लीचड़ - कीचड़ लोकसभा भिजवाते हो
क्यो! आषा करते हो इनसे भारत-भाग्य जगाने की
कवि‘आग’कहता है इनकी कीमत है दो-आान्ने की!!
राजनीति को गाली देने वाले राजनीति करते है!
प्रजातन्त्र के मरूद्यानो मे! घोडे, खच्चर सब चरते है!
षब्द भाव के घावो! की कुण्ठा को स्वय! बताते है!
नैतिकता मे! जीने वालो! की अपनी औकाते! है!
उॅ!ची बाते! करने वाला नीचे क्यो! गिर जाता है
ये भारत का जन - मानस है भीड़ स्वय बन जाता है
फिर होती है ठेकेदारी डेढ़ अरब नर - मुण्डो की
आदर्षो! मेॅ छिपी हुयी है देख सियासत गुण्डो! की
इतना तो मै!भी समझ गया,ये कच्चा फल है टूट गया
सम्मान मिला तो,हल्केपन से म!जिल पथ भी छूट गया
झूठी सच्ची तारीफो! से लक्ष्य स्वय! गिर जाते! है!
नौ - सीखिया फौजो! से राजा ही मारे जाते है!
अन्ना तो अब निपट गये,बष बाबा जी की बारी है
वैष्या जब तक गूॅ!गी है बष ,खेल तभी तक जारी है
मुॅ!ह खुलते ही षब्द स्वय!की भाव-भ!गिमा कह देता है
प्रजा - तन्त्र की नावो! को व्यभिचार हमेषा से खेता है
राजनीति मुर्दो की छोडो ,भजन करो अब गाॅ!वो मे!
क्यो! खाते हो दर-दर ठोकर ,मत कूदो स!भावो! मे!
काले धन से स्वाभिमान और लोकपाल बह जायेगा
क्या कलियुग मे! अन्ना बाबा भजन सनातन गायेगा
हद्द हो गयी प्रजातन्त्र की, नौट!की दिखलाते हो
चैराहे के लीचड़ - कीचड़ लोकसभा भिजवाते हो
क्यो! आषा करते हो इनसे भारत-भाग्य जगाने की
कवि‘आग’कहता है इनकी कीमत है दो-आान्ने की!!
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