यह पैरोल नहीं, अमीरों का पे- रोल है , मनी मून से कैसे हनी मून बनाया जाता है कैसे क़ानून को थप्पड़ मारा जाता, इसका ज्वलंत उदाहरण है , २५ रूपये का "बावर्ची" अब बना यरवदा जेल का "वर - देवा" खिलाड़ी..., बावर्ची, अब बन गया है जेल अधिकारियों का जेब खर्ची..., जेल में शराब से पैरोल को “पे” कर क़ानून को भी बनाया बावर्ची.. मनी मून से हनी मून के पेड रोल से क़ानून का बनाया भुरता
संजय दत्त को क़ानून के रक्षकों की संजीवनी ..
शीला दीक्षत की विशेष दीक्षा से जेसिका लाल के अपराधी, मनु शर्मा को पैरोल पर छोड़ा गया था, और वह पब (शराबी जोड़ों का मयखाना) में नशे में धुत्त मिला ....
आज देश में छोटे अपराधी व पाकेटमार , जेल में अपने अपराध से कई गुना ज्यादा की सजा से सड़ रहें है..??, क्योंकि उनके पास जमानत के लिए पैसे नहीं है.. वहीं माफिया “संविधान” में माफ़ +किया शब्द से गर्वित है, मेरे वेबस्थल का श्लोगन है.. “मेरा संविधान महान..., यहाँ हर माफिया पहलवान “... क़ानून इनकी तेल मालिश कर इन्हें इतना मुस्टंडा बनता है कि ६०० जमानत के बाद भी इनके चेहरों की लाली पर , न्यायाधीश के मुस्कुराते चहरे दिखते है.., बिकते क़ानून दिखाते हैं..
Posted in website on 17 October 2012. , कुछ अंश
आज का कानून. (कान + ऊन = क़ान मे ऊन= कानून बहरा हो गया है), अपराधी की पुस्तिका है, न्यायालय उनकी पाठशाला और जेल उसकी कार्यशाला है
इसमे अपराधी के लिये एक राहत का शब्द है जमानत…… ??????????
यह जमानत शब्द अपराधी के लिये अमानत बन गया है
इसमे एक अग्रिम जमानत भी है, जो अपराधी , अपराध करने से पहले या अपराध के तुरंत बाद ले लेता है और संविधान मुँह ताकता रहता है ?
अपराधी, जमानत के आड मे देश की अमानत (धरोहर ) बन जाता है
आज का कानून – मेरे विचार ….
इस देश न्याय पांने के लिये किसी भी व्यक्ती को, एक मकडी के जाल मे फसकर, मकडी (कानून) से लडना पडता है, इस जाल से उलझते- उलझते उसकी शारीरिक , मानसिक ताकत व घर बार बिक जा ता है, और क्या मिलता है? तारीख पर तारीख , न्याय पाने के चक्कर मे पीढिया गुजार दी जाती है…?? , घर मे कागजो के पुलीदों का ढेर , कहते है कानून मे कंकाल के अन्दर कंकाल होते है , इसमे उलझते जाते है.
आज न्याय की , “एक बन्दर और दो बिल्ली की कहानी गुजरे जमाने की बात हो गइ है, आज न्याय का बन्दर, अपने साथ दो बन्दर रखकर, न्याय के लिये तडफती बिल्लीयो को कहते है, न्याय के तराजू के पलडे की रोटी खत्म हो गई है, दोनो का पलडा एक समान है. जाओ, आगे न्याय चाहिए तो अपने घर बार बेच कर रोटी का जुगाड करो, “
आज न्याय तो नही मिलता है, हाँ, न्याय के नाम पर गरीबी जरूर मिलती है ?
इंडिया के कानून के शब्द कोश मे एक महत्वपूर्ण शब्द है प्राकृतिक न्याय ,इस शब्द के आड मे वकील बहस कर जज को झक झोर देता , जिसने, जितने ज्यादा व्याख्या (दलील) की क्षमता वह उतना बडा वकील कहलाता है
इस प्राकृतिक न्याय ने देश ने प्राकृतिक सौन्दर्य खो दिया है, भू मफिया जमीन , व दुसरे माफिया जनता व देश को लूट रहे है
आज एक मुकदमे का फैसला आने मे कम से कम 20-40 साल का समय लग जाता है , इस्का अर्थ हुआ के हम जज, पुलिस, वकीलो को बिना न्याय के वेतन दे रहे है
एक जज का कार्यकाल 2-4 साल का होता है, नया जज आने पर उसे मुकदमे का अध्धन करना पडता है, तारीख पर तारीख लगती है, जब तक वह मामले को समझने लगता है तो वह सेवांनृवितहो जाता है
प्रेमचन्द कि कहानी मे लिखा गया है, अदालते मतलब –कागजी घोडे दौडाना, इस कागजी घोडो पर बैठकर जजो वकीलो व पुलीसौ की फौजे आनन्द उठाते हुए अपनी आजीविका के साथ फरियादी को लूट रही है
किसी ने कहा है, “सभी कानून बेकार है अच्छे लोगो को उनकी जरूरत नही होती है और बुरे लोग उससे सुधरते नही है”,
आज के माहौल मे बुरे लोग सिर्फ सुधरते है औए वे अपनी सम्पती व सत्ता का अधिकार कर देश को चला रहे है,
एक ओटो रिक्शा के पीछे के लिखा था “सत्य परेशान होता है, लेकिन पराजित नही होता”
आज के मौजुदा हलात मे सत्य इतना परेशान होता है कि पराजित नही होने से पहले आत्महत्या कर लेता है – उदाहरण किसान आत्महत्या,और मध्यम वर्ग की आम जनता, गरीबी व भूखमरी से आत्महत्या के लाखो खबरे अखबारो मे पढने अखबारों मे मिलती है.
दुनिया के जिस देश मे प्रतिशोध वाला कानून है, वहा सबसे कम अपराध होते है. हमारे संविधान से न्याय न मिलने से हजारो फरियादी अपराधी बन चुके है, और परम्परागत अपराधी करोडपती है
अग्रेज लार्ड मैकाले का कानूनी सिद्धांत –
मैकाले ने एक कानून हमारे देश में लागू किया था जिसका नाम है Indian Penal Code (IPC). ये Indian Penal Code अंग्रेजों के एक और गुलाम देश Ireland के Irish Penal Code की फोटोकॉपी है, वहां भी ये IPC ही है लेकिन Ireland में जहाँ “I” का मतलब Irish है वहीं भारत में इस “I” का मतलब Indian है, इन दोनों IPC में बस इतना ही अंतर है बाकि कौमा और फुल स्टॉप का भी अंतर नहीं है।
मैकोले का कहना था कि भारत को हमेशा के लिए गुलाम बनाना है तो इसके शिक्षा तंत्र और न्याय व्यवस्था को पूरी तरह से समाप्त करना होगा और आपने अभी (आज मुझे कहना……. है ..????) मे Indian Education Act पढ़ा होगा, वो भी मैकोले ने ही बनाया था और उसी मैकोले ने इस IPC की भी ड्राफ्टिंग की थी। ये बनी 1840 में और भारत में लागू हुई 1860 में। ड्राफ्टिंग करते समय मैकोले ने एक पत्र भेजा था ब्रिटिश संसद को जिसमे उसने लिखा था कि::
“मैंने भारत की न्याय व्यवस्था को आधार देने के लिए एक ऐसा कानून बना दिया है जिसके लागू होने पर भारत के किसी आदमी को न्याय नहीं मिल पायेगा। इस कानून की जटिलताएं इतनी है कि भारत का साधारण आदमी तो इसे समझ ही नहीं सकेगा और जिन भारतीयों के लिए ये कानून बनाया गया है उन्हें ही ये सबसे ज्यादा तकलीफ देगी और भारत की जो प्राचीन और परंपरागत न्याय व्यवस्था है उसे जड़मूल से समाप्त कर देगा।“ वो आगे लिखता है कि
“जब भारत के लोगों को न्याय नहीं मिलेगा तभी हमारा राज मजबूती से भारत पर स्थापित होगा।”
ये हमारी न्याय व्यवस्था अंग्रेजों के इसी IPC के आधार पर चल रही है और आजादी के 65 साल बाद हमारी न्याय व्यवस्था का हाल देखिये कि लगभग 4 करोड़ मुक़दमे अलग-अलग अदालतों में पेंडिंग हैं, उनके फैसले नहीं हो पा रहे हैं। 10 करोड़ से ज्यादा लोग न्याय के लिए दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं लेकिन न्याय मिलने की दूर-दूर तक सम्भावना नजर नहीं आ रही है, कारण क्या है? कारण यही IPC है। IPC का आधार ही ऐसा है।
Please visit, one man army website with more than 100 post with self generated cartoons, just type meradeshdoooba on google search, Please see on Laptop/Desktop. , you can also Subscribe to the feed via email notifications भ्रष्टाचारीयों के महाकुंभ की महान-डायरी । — with Ranvir Dagar, Kali Das Patel, Kailash Tiwari and 31 others.
संजय दत्त को क़ानून के रक्षकों की संजीवनी ..
शीला दीक्षत की विशेष दीक्षा से जेसिका लाल के अपराधी, मनु शर्मा को पैरोल पर छोड़ा गया था, और वह पब (शराबी जोड़ों का मयखाना) में नशे में धुत्त मिला ....
आज देश में छोटे अपराधी व पाकेटमार , जेल में अपने अपराध से कई गुना ज्यादा की सजा से सड़ रहें है..??, क्योंकि उनके पास जमानत के लिए पैसे नहीं है.. वहीं माफिया “संविधान” में माफ़ +किया शब्द से गर्वित है, मेरे वेबस्थल का श्लोगन है.. “मेरा संविधान महान..., यहाँ हर माफिया पहलवान “... क़ानून इनकी तेल मालिश कर इन्हें इतना मुस्टंडा बनता है कि ६०० जमानत के बाद भी इनके चेहरों की लाली पर , न्यायाधीश के मुस्कुराते चहरे दिखते है.., बिकते क़ानून दिखाते हैं..
Posted in website on 17 October 2012. , कुछ अंश
आज का कानून. (कान + ऊन = क़ान मे ऊन= कानून बहरा हो गया है), अपराधी की पुस्तिका है, न्यायालय उनकी पाठशाला और जेल उसकी कार्यशाला है
इसमे अपराधी के लिये एक राहत का शब्द है जमानत…… ??????????
यह जमानत शब्द अपराधी के लिये अमानत बन गया है
इसमे एक अग्रिम जमानत भी है, जो अपराधी , अपराध करने से पहले या अपराध के तुरंत बाद ले लेता है और संविधान मुँह ताकता रहता है ?
अपराधी, जमानत के आड मे देश की अमानत (धरोहर ) बन जाता है
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इस देश न्याय पांने के लिये किसी भी व्यक्ती को, एक मकडी के जाल मे फसकर, मकडी (कानून) से लडना पडता है, इस जाल से उलझते- उलझते उसकी शारीरिक , मानसिक ताकत व घर बार बिक जा ता है, और क्या मिलता है? तारीख पर तारीख , न्याय पाने के चक्कर मे पीढिया गुजार दी जाती है…?? , घर मे कागजो के पुलीदों का ढेर , कहते है कानून मे कंकाल के अन्दर कंकाल होते है , इसमे उलझते जाते है.
आज न्याय की , “एक बन्दर और दो बिल्ली की कहानी गुजरे जमाने की बात हो गइ है, आज न्याय का बन्दर, अपने साथ दो बन्दर रखकर, न्याय के लिये तडफती बिल्लीयो को कहते है, न्याय के तराजू के पलडे की रोटी खत्म हो गई है, दोनो का पलडा एक समान है. जाओ, आगे न्याय चाहिए तो अपने घर बार बेच कर रोटी का जुगाड करो, “
आज न्याय तो नही मिलता है, हाँ, न्याय के नाम पर गरीबी जरूर मिलती है ?
इंडिया के कानून के शब्द कोश मे एक महत्वपूर्ण शब्द है प्राकृतिक न्याय ,इस शब्द के आड मे वकील बहस कर जज को झक झोर देता , जिसने, जितने ज्यादा व्याख्या (दलील) की क्षमता वह उतना बडा वकील कहलाता है
इस प्राकृतिक न्याय ने देश ने प्राकृतिक सौन्दर्य खो दिया है, भू मफिया जमीन , व दुसरे माफिया जनता व देश को लूट रहे है
आज एक मुकदमे का फैसला आने मे कम से कम 20-40 साल का समय लग जाता है , इस्का अर्थ हुआ के हम जज, पुलिस, वकीलो को बिना न्याय के वेतन दे रहे है
एक जज का कार्यकाल 2-4 साल का होता है, नया जज आने पर उसे मुकदमे का अध्धन करना पडता है, तारीख पर तारीख लगती है, जब तक वह मामले को समझने लगता है तो वह सेवांनृवितहो जाता है
प्रेमचन्द कि कहानी मे लिखा गया है, अदालते मतलब –कागजी घोडे दौडाना, इस कागजी घोडो पर बैठकर जजो वकीलो व पुलीसौ की फौजे आनन्द उठाते हुए अपनी आजीविका के साथ फरियादी को लूट रही है
किसी ने कहा है, “सभी कानून बेकार है अच्छे लोगो को उनकी जरूरत नही होती है और बुरे लोग उससे सुधरते नही है”,
आज के माहौल मे बुरे लोग सिर्फ सुधरते है औए वे अपनी सम्पती व सत्ता का अधिकार कर देश को चला रहे है,
एक ओटो रिक्शा के पीछे के लिखा था “सत्य परेशान होता है, लेकिन पराजित नही होता”
आज के मौजुदा हलात मे सत्य इतना परेशान होता है कि पराजित नही होने से पहले आत्महत्या कर लेता है – उदाहरण किसान आत्महत्या,और मध्यम वर्ग की आम जनता, गरीबी व भूखमरी से आत्महत्या के लाखो खबरे अखबारो मे पढने अखबारों मे मिलती है.
दुनिया के जिस देश मे प्रतिशोध वाला कानून है, वहा सबसे कम अपराध होते है. हमारे संविधान से न्याय न मिलने से हजारो फरियादी अपराधी बन चुके है, और परम्परागत अपराधी करोडपती है
अग्रेज लार्ड मैकाले का कानूनी सिद्धांत –
मैकाले ने एक कानून हमारे देश में लागू किया था जिसका नाम है Indian Penal Code (IPC). ये Indian Penal Code अंग्रेजों के एक और गुलाम देश Ireland के Irish Penal Code की फोटोकॉपी है, वहां भी ये IPC ही है लेकिन Ireland में जहाँ “I” का मतलब Irish है वहीं भारत में इस “I” का मतलब Indian है, इन दोनों IPC में बस इतना ही अंतर है बाकि कौमा और फुल स्टॉप का भी अंतर नहीं है।
मैकोले का कहना था कि भारत को हमेशा के लिए गुलाम बनाना है तो इसके शिक्षा तंत्र और न्याय व्यवस्था को पूरी तरह से समाप्त करना होगा और आपने अभी (आज मुझे कहना……. है ..????) मे Indian Education Act पढ़ा होगा, वो भी मैकोले ने ही बनाया था और उसी मैकोले ने इस IPC की भी ड्राफ्टिंग की थी। ये बनी 1840 में और भारत में लागू हुई 1860 में। ड्राफ्टिंग करते समय मैकोले ने एक पत्र भेजा था ब्रिटिश संसद को जिसमे उसने लिखा था कि::
“मैंने भारत की न्याय व्यवस्था को आधार देने के लिए एक ऐसा कानून बना दिया है जिसके लागू होने पर भारत के किसी आदमी को न्याय नहीं मिल पायेगा। इस कानून की जटिलताएं इतनी है कि भारत का साधारण आदमी तो इसे समझ ही नहीं सकेगा और जिन भारतीयों के लिए ये कानून बनाया गया है उन्हें ही ये सबसे ज्यादा तकलीफ देगी और भारत की जो प्राचीन और परंपरागत न्याय व्यवस्था है उसे जड़मूल से समाप्त कर देगा।“ वो आगे लिखता है कि
“जब भारत के लोगों को न्याय नहीं मिलेगा तभी हमारा राज मजबूती से भारत पर स्थापित होगा।”
ये हमारी न्याय व्यवस्था अंग्रेजों के इसी IPC के आधार पर चल रही है और आजादी के 65 साल बाद हमारी न्याय व्यवस्था का हाल देखिये कि लगभग 4 करोड़ मुक़दमे अलग-अलग अदालतों में पेंडिंग हैं, उनके फैसले नहीं हो पा रहे हैं। 10 करोड़ से ज्यादा लोग न्याय के लिए दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं लेकिन न्याय मिलने की दूर-दूर तक सम्भावना नजर नहीं आ रही है, कारण क्या है? कारण यही IPC है। IPC का आधार ही ऐसा है।
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