Monday, 7 October 2013



जब देश को, सत्ताखोर, माफिया मिलकर खा (मिल्खा) रहें है और महंगाई के रथ में मिल्खा सिंग से तेज दौड़कर देश का मिल्क पी रहे है और क्रिकेट को राष्ट्रीय धर्म कहकर, इसके भ्रष्टाचार के भगवान की पूजा कर माफियाओं की झोलिया भरी जा रहीं है, क्रिकेट के सट्टे से कालेधन को सफ़ेद धन बनाकर , विदेशो में भेजकर , देश की साख पर बट्टा लगा रहे हैं
इसी की आड़ में, रोज भ्रष्टाचार (घोटालों) के नए नए मिल्क पी कर , मुस्टंडे मिल्खा सिग पैदा हो रहे है. जो धर्मवाद, अलगाववाद, जातिवाद, आरक्षण के, तेल से , घुसपैठीयों से अपने शरीर (सता) की मालिश कर अपने को लौह पुरूष (लूट पुरूष ) कहकर आम आदमी को झांसा दे , भारत निर्माण से लेप टॉप किग तक कह रहे है
संविधान के मंदिर की आड़ में अपने को देश का रक्षक कहकर , कुपोषितों के निवाले को भी अपना अधिकार जता कर डकार गए है,
दोस्तों, आज की परिस्थिती में, स्वर्ण, रजत से कांस्य पदक लाने वाले खिलाडियों की आगवानी पर आवभगत तक नहीं होती है, वे तो एक दिन के मेहमान बनकर , अखबारों के पन्नों पर छोटी खबर बनकर, सिमट जाते है , और आगे गुमनामी में खो कर गरीबी की अपाहिजता का शिकार हो जाते है , ऐसे हजारों उदाहरण है, जबकि, खिलाडियों के खेल अधिकारी देश के पैसे से विदेशों में, पिकनिक मनाकर ऐश की जिन्दगी से देश के धन को चूना रहे है
याद रहे अभी हमें जो अन्तराष्ट्रीय खेलों में जो आंशिक सफलताएं मिली है, उसमे ९०% प्रतिशत योगदान , मध्यम वर्ग से निम्न वर्ग, यहाँ तक कि आदिवासी वर्गों तक के लोगों का था 

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