“देश में भारतीय रेल ही एकमेव राष्ट्रीय जनसेवा है,”
जहां आरक्षण फ़ार्म पर जाति नहीं पूछी जाती है…??, तथा वरिष्ठ नागरिकों को किराए में विशेष छूट दी जाती है,
याद रहे ,सता परिवर्तन (१९४७) के बाद भी भारतीय रेल आज तक देश के चार भागों में उत्तर, दक्षिण, पूरब, पश्चिम में विभाजित है …इसलिए उसे अपने गंतव्य स्थान में पहुँचने पर किसी राज्य की अनुमति नहीं लेनी पड़ती है,
वही राज्य की बसों को एक राज्य से, दूसरे राज्य की परिवहन सेवा में राज्य सरकारो, और तो और… एक नगर निगम की स्थानीय बसों को दूसरे नगर निगम में मुनाफे के खेल में आपस में लड़ाई हो जाती है…
याद रहे मुंबई से नई मुंबई की बस सेवा में पहले सिर्फ राज्य सेवा परिवहन को अनुमति थी , १५ साल ही, मुम्बई बस सेवा को नई मुंबई की बस सेवा की अनुमति दी गई … जबकि आज तक नई मुम्बई की परिवहन सेवा, नगरपालिका में घपले/घोटालों की वजह से नुक्सान में चल रही है
रेल की आरक्षित सीटों पर हर वर्ग, धर्म, जाति व अमीर से गरीब तक एक साथ यात्रा करते है , आज के ६६ वर्षों के इतिहास में जातिवाद, धर्मवाद के नाम से किसी यात्री में झगडा नहीं हुआ है, कोइ भी यात्री… रेल्वे में खानपान देने वाले कर्मचारी से उसकी जाति नहीं पूछता है ,
यात्रियों में भी रेल के चलने के बाद ही ,एक दूसरे से परिचय पाने की उत्सुकता से वे उसके, गंतव्य स्थान व उसके आगे जाने की जानकारी पूछते है, और अपने नए यात्रियों को .. जो शहर के बारे में अनजान है… उन्हें मार्गदर्शन कर कहते है, गंतव्य स्थान पर उतरने के बाद के नजदीक का रास्ता , व टैक्सी व आटोरिक्शा के लूटेरो से बचने के लिए उचित किराया व बस अड्डे की पैदल दूरी की जानकारी देते है…
यदि कोई यात्री अपने घर से भोजन लाता है तो सद्भाव से यहाँ तक पूछता है , भाई साहब.. क्या?, हमारी बनाई रोटी सब्जी खाओगे… ऐसे लाखों उदाहरण है… रेल यात्रा के दौरान ही, यात्री… भविष्य के घनिष्ठ मित्र बन गयें है
दोस्तों….?????, यदि हम ४-४८ घंटो का सफर ६६ सालों से रेल में कर आज तक आनंदित है, तो इस तरह का जीवन में… राष्ट्रवादी सफ़र… अपनी जिन्दगी में करें.. तो देश हजारों गुना आगे बढ़ जाएगा … जागों…. और भारतीय रेल के आदर्शों से ही … हम सब मिलकर… हम राष्ट्रवादी विचारधारा के जिंदादिली से सुपरफास्ट … से दुरंतो के लक्ष्य से अपने देश व जीवन को स्वर्णमय के साथ… स्वर्गमय बनाएं….
अतरिक्त पोस्ट- यह देश की बिडंबना है की सत्ता परिवर्तन के बाद हमारे सत्ताखोरों ने देश को उत्तर , दक्षिण , पूरब, पश्चिम के चार भागों में बांटने ने बजाय भाषावाद के नाम से १२ से ज्यादा प्रांत बनाकर, व सेना की प्रान्त के नाम से पहचान देश को बांटने का तड़का व जातिवाद, भाषावाद, धर्मवाद से विभिन्न अलग –अलग कानूनों से अलगाववाद के बीज तो तभी ही बो दिए थे...
आज राजनीती की कड़ाई में घुसपैठीयों की चासनी से वोट बैक का भजिया खाकर ...भारत निर्माण भज कर .., देश के जनता को भामा रहें है...
और तो और रेलवे की दलाली से देश के नेता अपने मुंह काली से देश का भठ्ठा बिठा रहें है...
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